Monday, April 27, 2015

22 अब तमन्ना नहीं है मुझे हार की

अब तमन्ना नहीं है मुझे हार की,
ना ही है आरजू दिल में बाज़ार की,
मंदिरों की भी चाहत न यूं तो मुझे,
ना हसीनों के बालों में गूँथो मुझे॥
 
उन स्वागत द्वारों पे मत टांगना,
भ्रष्ट नेता जहां से गुजरते फिरें,
ऐसी गर्दन की भी चाह मुझको नहीं,
देश हित में जो कटने को तन न सके॥
 
जो कि तूफान थे, देश की शान थे,
ना ख़्वाहिश थी जिनको कफन के लिए,
तोड़कर फेंकना उस समाधी पे बस,
हँस के जो मिट गये हैं वतन के लिये॥ 
रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

387. मत हसीनों के बालों में   

मत  हसीनों  के   बालों  में   गूँथो  मुझे।
अब  तमन्ना   नहीं   है   मुझे   हार  की।
मंदिरों  की  भी  चाहत   न  यूं  तो मुझे।
ना ही  है  आरजू  दिल  में  बाज़ार  की।

ऐसे  द्वारों  पे  जाकर  के  मत  टाँगना।
जिनसे  भ्रष्टों  की  रैली  गुजरती  फिरे।
ऐसी गर्दन  की  भी  चाह  मुझको नहीं।
देशहित  में  जो  कटने  से  डरती फिरे।

जो  कि  तूफान  थे, देश  की  शान  थे।
थी ख़्वाहिश न जिनको कफन के लिए।
तोड़कर  फेंकना उस  समाधी  पे  बस।
हँस के  जो मिट गये  हैं वतन  के लिए।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.07.2017
*****
 

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.