Monday, April 27, 2015

7 प्रेम के दो शब्द पढ़कर

प्रेम को पढ़कर के लोगो, मैं कहाँ काबिल हुआ।
व्यर्थ ही मैं प्रेम के, स्कूल में दाखिल हुआ॥
 
तब से तेरा हुश्न ये, ज्यादा लगे निखरा मुझे,
जब से तेरी जिंदगी में, यार मैं शामिल हुआ॥
 
जब शराफत से रहा, तो भटकता था दर-बदर,
कामियाबी मिल रही है, जब से वो जाहिल हुआ॥
 
धार था तो रौब था, रुतबा था, सबको खौफ था,
गंदगी से भर गया हूँ, जब से मैं साहिल हुआ॥
 
नासमझ, कमअक्ल, ढोंगी, ये मिले तमगे मुझे,
सादगी की ज़िन्दगी में, सिर्फ ये हासिल हुआ॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
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