Monday, April 27, 2015

20 "अभी तक होश न आया"

अभी मुख भी नहीं देखा, फ़कत पैरों को देखा है,
पड़ा तब से है चरणों में, अभी तक होश न आया।।
 
अभी क़दमों की चालों के, सिवा उसने न कुछ देखा,
तभी से लड़खड़ाता है, अभी तक होश न आया।।
 
फ़कत आँखों से' पीकर के, हुआ मदहोश इस तरह,
कहीं प्याला, कहीं है वो, अभी तक होश न आया।।
 
किसी ने चुपके से जाकर, उसे बिस्तर पे देखा था,
पकड़ कर रह गया बिस्तर, अभी तक होश न आया।।
 
बनाकर उसका बुत उसने, नज़र भर जिस घड़ी देखा,
तभी से बुत बना बैठा, अभी तक होश न आया।।
 
गयी वो ताज देखन को, मगर जब ताज ने देखा,
खड़ा खामोश है तब से, अभी तक होश न आया।।
 
बड़े मगरूर रहते थे, जो अपने हुश्न के ऊपर,
हमारे यार को देखा, अभी तक होश न आया।।
 
कयामत हुश्न है उसका, जो देखे वो बहक जाये,
उसे जिसने भी देखा है, उसी को होश न आया।।
 
बिना परदे के गर देखूँ, न जाने फिर क्या होगा,
फकत परदे में देखा था, अभी तक होश न आया।।
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