तरह देखा न कर
सच कहूँ तो मुस्कराकर, इस तरह देखा न कर,
अपनी' ये नजरें झुकाकर, इस तरह देखा न कर।।
देखना जो चाहती है, देख ले बस दूर से,
आँख से आँखें मिलाकर, इस तरह देखा न कर।।
कानाफूसी' चल रही है, हर गली में आजकल,
मजनुओं का दिल जलाकर, इस तरह देखा न कर।।
आपके घर के बगल में, मनचले भी लोग हैं,
हर किसी से दिल लगाकर, इस तरह देखा न कर।।
है नहीं तुझको पता, कि लोग कितना चाहते,
मर मिटेंगे लड़-लड़ाकर, इस तरह देखा न कर।।
इस तबस्सुम इस हँसी पर, जान जाती है निकल,
दाँत से उँगली दबाकर, इस तरह देखा न कर।।
आग पानी में लगा, देगा तुम्हारा तन-वदन,
झील के जल में समाकर, इस तरह देखा न कर।।
जाग जायेगी तमन्ना, इन बुतों में एक दिन,
तू इन्हें नज़दीक जाकर, इस तरह देखा न कर।।
कौन क्षण नीयत बदल ले, रूप तेरा देखकर,
आइने को पास लाकर, इस तरह देखा न कर।।
कल जिसे देखा था' तूने, हो गया वो बावला,
हसरतें दिल में जगाकर, इस तरह देखा न कर।।
कातिलाना ये नज़र, पत्थर के दिल को चीर दे,
इस तरह नजदीक आकर, इस तरह देखा न कर।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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पुरानी
मापनी-2122 2122 2122 212
सच कहूँ तो मुस्कराकर, इस तरह देखा न कर,
अपनी' ये नज़रें झुकाकर, इस तरह देखा न कर।।
देखना जो चाहती है, देख ले बस दूर से,
किन्तु आँखों में समाकर, इस तरह देखा न कर।।
कानाफूसी' चल रही है, हर गली में आजकल,
दाँत से उँगली दबाकर, इस तरह देखा न कर।।
कौन क्षण नीयत बदल दे, रूप तेरा देखकर,
आइने को सज-सँवरकर, इस तरह देखा न कर।।
आग पानी में लगा, देगा छरहरा तन-वदन,
झील के भीतर उतरकर, इस तरह देखा न कर।।
तेरे घर के भी बगल में, मनचले कुछ लोग हैं,
मशवरा है, हर किसी को, इस तरह देखा न कर।।
है नहीं तुझको पता, कि लोग कितना चाहते,
लड़-मरेंगे एक दिन ये, इस तरह देखा न कर।।
कल जिसे देखा था' तूने, हो गया वो बावला,
प्यार के मारे हुओं को, इस तरह देखा न कर।।
कातिलाना ये नज़र, पत्थर के दिल को चीर दे,
मेरा' तो नाजुक जिगर है, इस तरह देखा न कर।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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