Monday, April 27, 2015

32 पूरा का पूरा सना हुआ (गीत)

पूरा का पूरा सना हुआ, कीचड़ में कुर्ता खादी का।
भ्रष्टाचारी, हत्यारों का, संरक्षक कुर्ता खादी का॥
 
घर इनके हैं आरामगाह, गुंडे, बदमाश, डाकुओं की,
लोहूलुहान है लोकतंत्र, खा-खाकर मार चाकुओं की,
हर नेता आज लगे हमको, चाचा-ताऊ सैय्यादी का॥
 
खद्दरधारी, ब्योरोक्रेटिक, खटमल बन देश को चूँस रहे,
गोरी, तैमूर के ये वंशज, सरकारी पैसा लूट रहे,
सरकारी दफ्तर में देखो, आलम धन की बर्वादी का॥
 
मेहनत की पसलियां हैं दिखतीं, और कमर झुकी है यौवन की,
नंगे, भूखे बच्चे बिलखें, व्याकुल है हालत बचपन की,
अब तक न बुढ़ापा समझ सका, क्या मतलब है आजादी का॥
 
ज्यादा न झुका नाजुक डाली, ये टूट गई तो क्या होगा?
जो गाँठ सब्र की बांधी है, वह छूट गई तो क्या होगा?
न लावा बनकर फूट पड़े, अंर्तद्वंद फरियादी का॥
 
जो आज माँगते हक अपना, वो कल तेरा हक छीनेंगे,
जो आज प्यासे पानी को, कल खून तुम्हारा पी लेंगे,
नहीं एक तमाचा सह सकते, भूखी शोषित आबादी का॥
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