Monday, April 27, 2015

24 नाक में नथनी कर में कंगन (आल्हा छंद)

वीर छंद/आल्हा (16/15, अंत में 21)

एक तो उमर अठारह की है,  
दूजे रूप दिया करतार।
तीजे है भरपूर जवानी, 
चौथे सजधज हुई तियार।

शीशफूल जूड़े में साजे, 
और गले बिच मोतिन हार।
नाक नथनियाँ, कानन बाली, 
गजरा मँहके खशबूदार।।

भाल मध्य बिंदी शोभित है, 
दुगना माथा रही निखार।
रंग बदामी है गालों पर, 
मुख पर लिए लाज का भार।

सुर्ख गुलाबी होंठ लगे यों, 
ज्यों खिलने को कली तियार।
नख-शिख सजी कामिनी लागे, 
जैसे कोई चढ़ा सितार।।

माहवर साजे दोऊ पैरन, 
टिकुली चंदा के उनहार।
आठ मुद्रिकायें उँगलिन में, 
कोनी तक चूड़िन का भार।

पतली कमर लेय हिचकोले, 
जैसे लचक रही हो डार।
पंकज पैर धरति धरनी पर, 
रुक-रुक चलत कामिनी नार।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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वीर छंद/आल्हा
31मात्रा (16/15), अंत गुरु लघु (21) अनिवार्य

नाक नथनियाँ, कर में कंगन, 
कोनी तक चूड़िन का भार।
नयन झुके हैं, पलकें भारी, 
अरु अँखियों पर चढ़ा खुमार।।

गाल गुलाबों सम लगते हैं, 
मुखड़ा चंदा के उनहार।
सुर्ख गुलाबी ओंठ लगें ज्यों, 
हो खिलने को कली तियार।।

मेंदी साज रही हाथों में, 
और गले बिच मोतिन हार।
इतना सारा बोझ सहन को,
ग्रीवा करती है इनकार।।

रूप, जवानी अरु आभूषण, 
ऊपर से सोलह श्रृंगार।
यों सज-धजकर बैठी गोरी, 
मोहित करने को संसार।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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