दौर ये फिसलन भरा है, इस तरह से मत चलो।।
आग के दरिया में मत घुस, सोच ले अंजाम को,
आग आखिर आग होती, इस तरह से मत चलो।।
मत उलझ भंवरों से ऐसे, तू अभी कच्ची कली,
बात मानो इस उमर में, इस तरह से मत चलो।।
फूल सी निखरी हुई, इस देह पर काबू रखो,
इसको बेकाबू बनाकर, इस तरह से मत चलो।।
ये तेरी अल्हड़ जवानी, ले रही अंगड़ाइयाँ,
राह में अंगड़ाइयाँ ले, इस तरह से मत चलो।।
ठीक है फागुन महीने, का नशा तुझ पर चढ़ा,
पर नशे में लड़खड़ाकर, इस तरह से मत चलो।।
अनछुए यौवन पे तेरे, है नज़र सबकी गढ़ी,
तंग गलियों से गुजरकर, इस तरह से मत चलो।।
दूधिया तन ले प्रिये मत, झील के भीतर घुसो,
आग दरिया में लगाने, इस तरह से मत चलो।।
जब जमीं पर तू चले तो, साँस थम जाती मेरी,
अह! मेरी गजगामिनी तुम, इस तरह से मत चलो।।
उर्वशी, रंभा, अरे ओ ! मेनका, ओ ! मोहनी,
तुम मुझे पथ-भ्रष्ट करने, इस तरह से मत चलो।।
इस तरह यों सज-सँवरकर, काम की देवी रती,
प्राण हरने मुझ पुरुष के, इस तरह से मत चलो।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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