जिनमें डूबे फिर न उबरे, उन आँखों का यारो क्या कहना।।
धरती सा धैर्य दिखे जिनमें, जो अम्बर सा विस्तार लिए,
सागर को समेटे जो खुद में, उन आँखों का यारो क्या कहना।।
निश-दिन जो पथ पर बिछकर के, साजन की राह निहार रहीं,
बिरहा के बोझ से बोझिल हैं, उन आँखों का यारो क्या कहना।।
जो वार कटारी सा करतीं, जो उर के भीतर जा धँसतीं,
जो चाक जिगर कर देतीं हैं, उन आँखों का यारो क्या कहना।।
जो चैन चुराकर हर दिल को, कंगाल करें, बेहाल करें,
मदहोश करें, बेहोश करें, उन आँखों का यारो क्या कहना।।उन मद्य भरे दो प्यालों को, जिसने देखा मदमस्त हुआ,
जिन्हें देख के दुनियाँ बौराई, उन आँखों का यारो क्या कहना।।
ज्यों-ज्यों घूँघट ऊपर सरका, त्यों-त्यों धरनी की ओर झुकीं,
जो शर्मो-हया से उठ न सकीं, उन आँखों का यारो क्या कहना।।जिनमें हैं तमन्ना, आकर्षण, जीवन जीने का आमंत्रण,
जिनमें ब्रह्मांड समाया हैं, उन आँखों का यारो क्या कहना।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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