Monday, April 27, 2015

17 हमारे पास आकर के

हमारे पास आकर के, मेरे पहलू में तुम बैठो,
वहाँ पर क्यों खड़ी ऐसे, यहाँ आकर के तुम बैठो।।
 
अजी मैंने भी दुनियाँ को, बड़े भीतर से देखा है,
जहाँ सब बैठना चाहें, वहाँ जाकर न तुम बैठो।।
 
छुपाना लाख तुम चाहो, मगर ये प्यार
कब छुपता?
दर-ओ-दीवार भी पतले, न इनके पास तुम बैठो।।
 
बनाकर झील को दर्पण, न खुद को इस तरह देखो,
किनारे टूट जायेंगे, किनारों पर न तुम बैठो।।
 
गुलाबों सा खिला चेहरा, अगर जो देख लें तारे,
जमीं पर आ गिरेंगे सब, खुली छत पर न तुम बैठो।।
 
हमारा फ़र्ज़ चेताना, तू माने या नहीं माने,
तुम्हारा दिल जहाँ चाहे, वहाँ जाकर के तुम बैठो।।
 
तमन्ना, आरजू, ख्वाहिश, सभी कुछ छोड़ दूँगा मैं,
सँवरकर, एक दिन आकर, मेरे सम्मुख जो तुम बैठो।।
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