विधाता छंद (14/14)
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जलाकर मेरी बस्ती को, खुदी आकर बुझाते हो।
हमें दंगों में झुलसाकर, अमन के गीत गाते हो।
तुम्हें मतलब न हिन्दू से, न मतलब है मुसलमां से,
धर्म का नाम लेकर के, यहाँ झगड़े कराते हो।।
हमारी तंगहाली पर, फसल अपनी उगाते हो,
हमारी फूटी किस्मत पर, मुक़द्दर आजमाते हो
गरीबी, भुखमरी तुमने, किताबों में पढ़ी होगी,
उसी को सुनके, पढ़कर के, हमें किस्से सुनाते हो।।
जरूरत के समय पर आ, हमें अपना बताते हो,
बनाते आ रहे उल्लू, अभी भी तुम बनाते हो,
मरें हम भूख से या फिर, गले में डाल कर फंदा,
हमारी लाश को कौओं सा, तुम मिल-बाँट खाते हो।।
हमारी ही बदौलत से, सुबह और शाम खाते हो,
मगर अफ़सोस है इतना, हमें ही भूल जाते हो,
हमारी मौत की चर्चा से, तुमको वास्ता इतना,
उसी चर्चा की चर्चा कर, सदा चर्चा में आते हो।।
उदर की आग होती क्या, गरीबी क्या, ये क्या जानो,
जवानी में बुढ़ापा क्या, धँसी आँखों को क्या जानो,
मेरी फूटी कठौती से, तबे से, क्या तुम्हें मतलब,
रखी चूल्हे पे खाली इस, पतीली को क्या जानो।।
गगनचुम्बी मकानों को, जमीनें चाहिए मेरी,
अमीरों को, दलालों को, जमीनें चाहिए मेरी,
हमें छत भी मयस्सर ना, करा पायीं जो सरकारें,
उन्हीं को, अरबपतियों को, जमीनें चाहिए मेरी।।
तुम्हें मलहम से क्या मतलब, तुम्हें तो चोट से मतलब,
तुम्हें अच्छों से क्या मतलब, तुम्हें तो खोट से मतलब,
तुम्हें कुछ फर्क नहिं पड़ता, अजी ये जानते हम भी,
तुम्हें मतलब कहाँ हमसे, तुम्हें तो वोट से मतलब।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
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जलाकर मेरी' बस्ती को, खुदी आकर बुझाते हो।
हमें दंगों में' झुलसाकर, अमन का गीत गाते हो।
तुम्हें मतलब न हिन्दू से, न मतलब है मुसलमां से,
लगाकर धर्म के नारे, यहाँ झगड़े कराते हो।
हमारी फूटी' किस्मत पे, उगाते आ रहे फसलें,
हमारी तंगहाली पर, मुक़द्दर आजमाते हो।
गरीबी, भुखमरी तुमने, किताबों में पढ़ी है बस,
उसी को रोज पढ़ सुनकर, हमें किस्से सुनाते हो।
गगनचुम्बी मकानों को, जमीनें चाहिऐ मेरी,
उसे ही हड़पने को तुम, नये कानून लाते हो।
अभी तक छत न दे पाये, हमारे रहनुमा हमको,
दिखाकर ख्वाब महलों के, हमें उल्लू बनाते हो।
मरें हम भूख से या फिर, गले में डालकर फंदा,
हमारी लाश को कौओं सा' तुम मिल बाँट खाते हो।
हमारी ही बदौलत से, उदर किलकोरियाँ करता,
मगर अफ़सोस है इतना, हमें ही भूल जाते हो।
हमारी मौत की चर्चा से, तुमको वास्ता इतना,
उसी चर्चा की' चर्चा कर, सदा चर्चा में' आते हो।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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