राजपथ उनको दिया गया।
जिन्हें चलने का नहीं सऊर॥
जिन्हें चलने का नहीं सऊर॥
चुराएँ मुख सच्चाई से,
लोग डरते अच्छाई से,
झूठ की कर रहे जय-जयकार,
आज का कैसा ये दस्तूर॥
लोग डरते अच्छाई से,
झूठ की कर रहे जय-जयकार,
आज का कैसा ये दस्तूर॥
बताएं खुद को वो मेहताब,
लिए कुम्लाहा चेहरा जो,
बात सूरज की करते है,
नहीं जुगुनूँ के जितना नूर॥
लिए कुम्लाहा चेहरा जो,
बात सूरज की करते है,
नहीं जुगुनूँ के जितना नूर॥
रूप पर इतराना न ठीक,
हुश्न पर इठलाना न ठीक,
जवानी दो दिन की मेहमान,
अजी क्यों रहतीं इतनी दूर॥
हुश्न पर इठलाना न ठीक,
जवानी दो दिन की मेहमान,
अजी क्यों रहतीं इतनी दूर॥
झुकाते क्यों नज़रें हमसे,
घुमा लेते क्यों अपना मुँह,
चुराओगे कब तक आँखें,
चार तो होंगीं कभी जरूर॥
घुमा लेते क्यों अपना मुँह,
चुराओगे कब तक आँखें,
चार तो होंगीं कभी जरूर॥
हमीं को हँस-हँस के चूँसें,
हमीं से यौवन सुख लूटें,
हमारे बल के ही बल पर,
रहा करतीं हो यों मगरूर॥
हमारे बल के ही बल पर,
रहा करतीं हो यों मगरूर॥
समर्पण तुम करतीं हो तो,
बिठा के सर पर रखते हम,
तुम्हारी इज्जत ही तो है,
हमारा सबसे बड़ा गुरूर ॥
बिठा के सर पर रखते हम,
तुम्हारी इज्जत ही तो है,
हमारा सबसे बड़ा गुरूर ॥
तुम्हारी अस्मत की खातिर,
महाभारत तक करते हम,
पुरुष, पुरुषों से लड़ मरता,
सोचिए कुछ तो अजी हुज़ूर॥
किसी को अपचन हो जाता,
कहीं टुकड़ा न मिल पाता,
किसी को नहीं धतूरा फल,
किसी को मिलते हैं अंगूर॥
महाभारत तक करते हम,
पुरुष, पुरुषों से लड़ मरता,
सोचिए कुछ तो अजी हुज़ूर॥
किसी को अपचन हो जाता,
कहीं टुकड़ा न मिल पाता,
किसी को नहीं धतूरा फल,
किसी को मिलते हैं अंगूर॥
नहीं पैसा तो प्यार नहीं,
बिना इसके घर-वार नहीं,
आज पैसे में वो ताकत,
गधे को मिल जाती है हूर॥
बिना इसके घर-वार नहीं,
आज पैसे में वो ताकत,
गधे को मिल जाती है हूर॥
मुखौटे हैं सब के मुख पर,
किसी पर करे भरोसा क्या,
पुलिस, गुंडा, नेता मिलकर,
देश को लूट रहे भरपूर॥
किसी पर करे भरोसा क्या,
पुलिस, गुंडा, नेता मिलकर,
देश को लूट रहे भरपूर॥
करें उल्लू आयोजन अब,
टिटहरी करती कविता पाठ,
काग के भाषण पर वाह-वाह,
हंस करने को हैं मजबूर॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
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टिटहरी करती कविता पाठ,
काग के भाषण पर वाह-वाह,
हंस करने को हैं मजबूर॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
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