दिन में मत बाहर कढ़ आली, तेरा रूप निरख रवि रुक नहिं जाए,
सखि रात को मत छत पर निकरो, शशि देख तुझे कहीं छुप नहिं जाए,
तेरे तन से गंध चुरावन हित, कहीं तुझसे समीर लिपट नहिं जाए,
जो भूल गई निज कर्म पवन, जा तन से स्वाँस निकल नहिं जाए।।
सखि रात को मत छत पर निकरो, शशि देख तुझे कहीं छुप नहिं जाए,
तेरे तन से गंध चुरावन हित, कहीं तुझसे समीर लिपट नहिं जाए,
जो भूल गई निज कर्म पवन, जा तन से स्वाँस निकल नहिं जाए।।
रवि, चाँद, समीर जो पथ भटकें, जगवासिन मारग कौन दिखाए,
सखि तेरो तो कछु न जाइहै, जिनको जाइहै, उन्ह को समझाए,
फिर कौन संभाले जा धरनी, जब जाकिह चाल बिगड़ जाए,
यही हाल रहा दो-चार दिना, तेरी दृष्टि से सृष्टि को कौन बचाए।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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सखि तेरो तो कछु न जाइहै, जिनको जाइहै, उन्ह को समझाए,
फिर कौन संभाले जा धरनी, जब जाकिह चाल बिगड़ जाए,
यही हाल रहा दो-चार दिना, तेरी दृष्टि से सृष्टि को कौन बचाए।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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