Monday, April 27, 2015

1. न कोई भाग्य से उठता

न कोई भाग्य से उठता, न कोई भाग्य से गिरता।
उठाती है, गिराती है, मनुज के कर्म की रेखा॥

कर्मफल सामने आता, कभी निश्फल नहीं जाता,
कर्मफल ढक नहीं सकती, कोई भी आवरण रेखा॥ 

अगर धन ही है सच्चा सुख, तो गौतम को क्या दुःख था ?
करो तुम तर्क और चिंतन, वो क्या थी मर्म की रेखा॥

ये हिन्दू है, वो मुस्लिम है, इसाई ये, यहूदी वो,
मनुज तो मनुज होता है, ये कैसी भरम की रेखा॥

पानी बोतल में मिलता है, लहू बहता है सड़कों पर,
जमीं क्यों रक्तरंजित है? ये किसके कर्म की रेखा॥

खुदा की इस जमीं को हम ने, टुकड़े-टुकड़े कर डाला,
लहू से सरहदें खींचीं, न खींची प्रेम की रेखा॥

नाम जेहाद का देकर, मौत का ताण्डव होता,
धर्म की लाश पर खिंचती है, देखो धर्म की रेखा॥

न कोई जन्म से ऊँचा, न कोई जन्म से नीचा,
ऊँच औ नीच तय करती, मनुज के आचरण रेखा॥

वो कैसे ऊँच हो सकता, हो जिसका आचरण नीचा,
नहीं वो नीच हो सकता, हो जिसका आचरण ऊँचा॥

रणवीर सिंह (अनुपम)
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