उजाले में निकलें, तन उनका सुलगता है,
चाँदनी में निकलें, मुख उनका झुलसता है,
जब भी हँसें तो लगता, चूड़ी खनक रही है,
गुनगुनाएँ ऐसे, ज्यों सारंगी बज रही है॥
चाँदनी में निकलें, मुख उनका झुलसता है,
जब भी हँसें तो लगता, चूड़ी खनक रही है,
गुनगुनाएँ ऐसे, ज्यों सारंगी बज रही है॥
पंखे की हवा में, तन उनका लचक जाये,
मूली को सूँघ लें तो, सौ बार छींक आये,
दौड़ लगायें तो, चीटी से पिछड़ जायेँ,
एवरेस्ट चढ़ गईं, गर छत पे पहुँच जायेँ॥
मूली को सूँघ लें तो, सौ बार छींक आये,
दौड़ लगायें तो, चीटी से पिछड़ जायेँ,
एवरेस्ट चढ़ गईं, गर छत पे पहुँच जायेँ॥
दही को जब वो खाते हैं, तो उनके दाँत हिलते हैं,
रखें जब पैर मख़मल पर, तो उनके पैर छिलते हैं,
उँगलियाँ हिलने लगतीं हैं, अगर एक काज सिलते हैं,
हथेली इस तरह कोमल, कि दो फुल्के न बिलते हैं॥
रखें जब पैर मख़मल पर, तो उनके पैर छिलते हैं,
उँगलियाँ हिलने लगतीं हैं, अगर एक काज सिलते हैं,
हथेली इस तरह कोमल, कि दो फुल्के न बिलते हैं॥
जीभ झुलस जाती है, लस्सी की तपन से,
कमर दुखने लगती है, साड़ी के वजन से,
दर्दे कलाई हो जाता, कंगन के वजन से,
आ जाती मोच पैर में, पायल के वजन से॥
कमर दुखने लगती है, साड़ी के वजन से,
दर्दे कलाई हो जाता, कंगन के वजन से,
आ जाती मोच पैर में, पायल के वजन से॥
माथा दुखने लगता है, बिंदी के भार से,
कंधे लचक जाते हैं, कुर्ती के भार से,
गर्दन है लोच खाती, बालों के भार से,
सीना पसीना हो जाता, फूलों के हार से॥
कंधे लचक जाते हैं, कुर्ती के भार से,
गर्दन है लोच खाती, बालों के भार से,
सीना पसीना हो जाता, फूलों के हार से॥
हालात इस तरह के, हर बात से डरें,
हालत है मेरी ऐसी, कैसे ब्याँ करें,
महबूब इतनी नाजुक, कैसे क्या करें।
आता नहीं समझ में, ऐसे में क्या करें॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
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हालत है मेरी ऐसी, कैसे ब्याँ करें,
महबूब इतनी नाजुक, कैसे क्या करें।
आता नहीं समझ में, ऐसे में क्या करें॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
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