Tuesday, July 30, 2019

817. राँड़ रड़ापो काट ले (कुंडलिया)

817. राँड़ रड़ापो काट ले (कुंडलिया)

राँड़  रड़ापो  काट ले, रसिक  न काटन  देंय।
कूद-कूद बिन बात पर, जाय-जाय सुध लेंय।
जाय-जाय सुध लेंय, छः दफा दिन में रड़ुआ।
तिरछी  माँग  निकार, ताक में रहते  भड़ुआ।
लोक-लाज नहिं उम्र, न  दीखे  इन्हें  बुढ़ापो।
ऐसे  में   किस  तरह, काट  ले  राँड़  रड़ापो।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.07.2019
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Monday, July 29, 2019

816. जिस रोज से देखा है तुझको (मुक्तक)

816. जिस रोज से देखा है तुझको (मुक्तक)


जिस रोज से देखा है तुझको, उस रोज से तुझमें दिल अटका।
इक बार अरे यह  क्या भटका, तब  ही  से  फिरे भटका-भटका।
नाजुक तन पर यों जुल्म न कर, इस भाँति लगा मत तू झटका।

केहर  कटि  मोंच न  खा जाए, मन में दिनरात यही खटका।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.07.2019
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Sunday, July 28, 2019

815. चरणवंदना छलकपट (कुंडलिया)

815. चरणवंदना छलकपट (कुंडलिया)

चरणवंदना, छलकपट,  ढोंग,  अंधविश्वास।
फूहड़ता,   बेहूदगी,  नैतिकता    का   ह्रास।
नैतिकता  का   ह्रास, चक्षु   दोऊ  है   मीचे।
अंधभक्ति  में   गिरा,  मीडिया  इतना  नीचे।
फड़फड़ाय रह जाय, मगर कर सके बंद ना।
बेबस  हो  दिन-रात, कर  रहा  चरणवंदना।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.07.2019
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814. नहिं काँवड़ हैं नहिं कावड़िए (मुक्तक)

814. नहिं काँवड़ हैं नहिं कावड़िए (मुक्तक)

नहिं काँवड़ हैं, नहिं कावड़िए, पहले-सा दिखे नहिं दमखम है।
सब शिविर पड़े सूने-सूने, सड़कों से गायब बम-बम।
पैरों में कमर में नहिं घुँघुरू, पायल भी नहीं, नहिं छम-छम है।
लगता  है  भाँग-धतूरे  का, इस  बार असर कुछ कम-कम है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.07.2019
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813. ईश्वर से है कामना (कुंडलिया)

813. ईश्वर से है कामना (कुंडलिया)

ईश्वर  से   है   कामना,  रहो   हमेशा   साथ।
सुख-दुख  में  छूटे  नहीं, प्रिये  तुम्हारा हाथ।
प्रिये   तुम्हारा   हाथ, मुझे   देता   है  संबल।
जीवन में हो तुम्हीं, तुम्हीं इस मन  में केवल।
प्रेम  त्याग  तकरार, तुम्हीं से पोषित  है घर।
जीवन दिया  सँवार, कृपा  कीन्ही  है  ईश्वर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.07.2019
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Wednesday, July 24, 2019

812. तेरे सँग जो संगिनी (कुंडलिया)

812. तेरे सँग जो संगिनी (कुंडलिया)

तेरे  सँग   जो   संगिनी, कल   थी  मेरे  संग।
गिरगिट  से भी  तेज है, पल-पल बदले  रंग।
पल-पल बदले रंग, वफ़ा इसको नहिं आती।
झूठे अश्रु  बहाय, कसम यह  सौ-सौ खाती।
धन दौलत सुख-चैन, हाथ सब पर यह फेरे।
हँस-हँस  करे  हलाल, संग  में  जो   है  तेरे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.07.2019
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811. नहीं मठों में कुछ रखा (कुंडलिया)

811. नहीं मठों में कुछ रखा (कुंडलिया)

नहीं मठों में  कुछ रखा, सब कोरी बकबास। 
मंदिर में भी कुछ नहीं, मत रख इनसे आस।
मत रख इनसे आस, यहाँ पर सिर्फ कीच है।
जातिपाँति छल कपट, सोच निकृष्ट नीच है।
छुआछूत पाखण्ड, गले  तक  भरा शठों  में।
छोड़  बावले  छोड़, रखा कुछ  नहीं मठों में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.07.2019
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811. नहीं मठों में कुछ रखा (कुंडलिया)

811. नहीं मठों में कुछ रखा (कुंडलिया)

नहीं मठों में  कुछ रखा, सब कोरी बकबास। 
मंदिर में भी कुछ नहीं, मत रख इनसे आस।
मत रख इनसे आस, यहाँ पर सिर्फ कीच है।
जातिपाँति छल कपट, सोच निकृष्ट नीच है।
छुआछूत पाखण्ड, गले  तक  भरा शठों  में।
छोड़  बावले  छोड़, रखा कुछ  नहीं मठों में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.07.2019
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810. मंदिर-मस्जिद में नहीं (कुंडलिया)

810. मंदिर-मस्जिद में नहीं (कुंडलिया)


मंदिर-मस्जिद में नहीं, जो  है  मन के  पास।

इन पर अब तो आजकल, रहा नहीं विश्वास।

रहा   नहीं   विश्वास, कैद  कर  रक्खे  ईश्वर।

शब्दों में  है  जहर, शीश  पर  चढ़ा शनीचर।

बेमतलब की अकड़, पकड़कर  बैठे हैं जिद।

गुमसुम से चुपचाप, खड़े  हैं  मंदिर-मस्जिद।


रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.07.2019
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809. सत्ता में जो-जो मिले (कुंडलिया)

809. सत्ता में जो-जो मिले (कुंडलिया)

सत्ता में  जो-जो मिले, मिले न मठ  के पास।
इसीलिए  मठ  से  नहीं, सत्ता  से   है  आस।
सत्ता   से   है  आस,  लुटेरे   ठग  चोरों  को।
लोभी   लंपट   दुष्ट,  धूर्त   काले - गोरों  को।
नौकर - चाकर  फोन, कोठियां  गाड़ी भत्ता।
सारे ही सुख मिलें, मिले जिस दिन से सत्ता।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.07.2019
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Tuesday, July 23, 2019

808. आजकल मगरूर बेहद (मुक्तक)

808. आजकल मगरूर बेहद (मुक्तक)

आजकल मगरूर बेहद, हो  रहीं हैं  कुर्सियाँ।
नफरतों के बीज घर-घर, बो रहीं हैं  कुर्सियाँ।
लाज लुटती तो लुटे, मरता कोई तो  वह मरे।
तानकर खद्दर की चादर, सो रहीं हैं कुर्सियाँ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
19.07.2019
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Monday, July 22, 2019

807. लोग भूख से मर रहे (कुंडलिया)

807. लोग भूख से मर रहे (कुंडलिया)

लोग भूख से मर रहे, मजा कर  रहा तंत्र।
कुछ ही यहाँ स्वतंत्र है, शेष सभी परतंत्र।
शेष  सभी परतंत्र, लगे हैं  मुँह  पर ताले।
था-था थैया  करें, मौज  में  दौलत  वाले।
सूख-सूख हो गए, नौजवां जले  रूख से।
सूखा बाढ़ अकाल, मर रहे लोग भूख से।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
22.07.2019
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Sunday, July 21, 2019

805. मंदिर की जिद मत करे (कुंडलिया)

805. मंदिर की जिद मत करे (कुंडलिया)

मंदिर  की  जिद  मत  करे, तू  है  अरे अछूत।
नहीं  उच्चकुल  गोत्र  है, नहिं  सवर्ण का पूत।
नहिं  सवर्ण  का  पूत, इसलिए  हूँ  समझाता।
जन्मजाति तू हीन, समझ में क्यों नहिं आता।
खाकर  घूँसा-लात, भेंट मत  चढ़ शातिर की।
ज्ञानचक्षु  को खोल, छोड़ तू  जिद मंदिर की।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
21.07.2019
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Saturday, July 20, 2019

804. पढ़ा-पढ़ाकर थक गए (कुंडलिया)

804. पढ़ा-पढ़ाकर थक गए (कुंडलिया)

पढ़ा-पढ़ाकर  थक गए, नीत नियम के पाठ।
उसने  है  सीखा  फकत, सोलह  दूनी आठ।
सोलह  दूनी  आठ, तीन  को  पाँच  बताता।
कैसे    बोलें    झूठ,  उसे   बाखूबी   आता।
अर्धसत्य  आँकड़े,  गिनाता   बढ़ा-चढ़ाकर।
मरने  वाले  मरे,  सत्य   को   पढ़ा-पढ़ाकर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
20.07.2019
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Wednesday, July 17, 2019

803. तेरी जो यह भक्त है (कुंडलिया)

803. तेरी जो यह भक्त है (कुंडलिया)

तेरी  जो  यह  भक्त  है, कल  थी  मेरी भक्त।
मित्र  बदलने में  इसे, कभी न  लगता  वक्त।
कभी न लगता वक्त, वफ़ा इसने नहिं सीखी।
फितरत  इसकी मित्र, रही है  जोंक सरीखी।
कन्नी   लेगी  काट, एक   दिन   तुझसे  चेरी।
जो  मेरी   ना   हुई, भला  क्या   होगी  तेरी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.07.2019
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802. मेरे कल जो भक्त थे (कुंडलिया)

802. मेरे कल जो भक्त थे (कुंडलिया)

मेरे कल  जो  भक्त थे, अब  हैं तेरे भक्त।
परसों  होंगे  और  के, ये  हैं वक्त-परस्त।
ये  हैं वक्त-परस्त, वफादारी  नहिं आती।
कन्नी लेते काट, मुसीबत जब पड़ जाती।
जो-जो मित्र घनिष्ठ, आज हैं तुझको घेरे।
आकर के कल  फेरि, चाटिऐं  तलवे मेरे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.07.2019
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Tuesday, July 16, 2019

801. रोम-रोम कर्जे में डूबा (मुक्तक)

801. रोम-रोम कर्जे में डूबा (मुक्तक)

रोम - रोम   कर्जे  में   डूबा,  देह   लगी   है   सट्टे  पर।
बीज-खाद  में  लोटा-थरिया, रखे ब्याज अरु बट्टे  पर।
दिन भर गात जलाती कमली, बच्चों के सँग भट्टे  पर।
और शाम को खीज उतारे, कुढ़-कुढ़कर सिलबट्टे पर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.07.2019
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801. रोम-रोम कर्जे में डूबा (मुक्तक)

रोम - रोम   कर्जे   में  डूबा,  देह   लगी   सट्टे  पर।
बीज-खाद  में  लोटा-थरिया,  रखे ब्याज-बट्टे  पर।
दिन भर गात जलाती कमली, बच्चों सँग भट्टे पर।
और शाम को खीज उतारे, कुढ़-कुढ़ सिलबट्टे पर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.07.2019
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Sunday, July 14, 2019

800. पंकज मुख श्यामल लटें (कुंडलिया)

800. पंकज मुख श्यामल लटें (कुंडलिया)

पंकज  मुख  श्यामल लटें, गौरवर्ण  ये  गात।
गहरे दृग, रक्तिम अधर, मृदु मुस्कान  सुहात।
मृदु मुस्कान  सुहात, भाल पर  बिंदी  चमके।
मलयज  बहे   सुगंध, देह  कुंदन-सी  दमके।
नथनी, झुमके, हार, सभी लूटें अनुपम सुख।
पंकज रहा लजाय, देखकर यह पंकज मुख।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.07.2019
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Friday, July 12, 2019

799. दिल लेकर के दिलदार बने (मुक्तक)

799. दिल लेकर के दिलदार बने (मुक्तक)

दिल लेकर के दिलदार बने, फिर कैसे कहें तुम जानत ना।
हम प्रेम करें  दिल खोल करें, हम प्रेम में बीनत- छानत ना।
हिय हार गए  सब सौंप दिया, हम मानत हैं  तुम मानत ना।
इस बात पे  लानत है तुमको, हमको इस बात पे लानत ना।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.07.2019
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Thursday, July 11, 2019

798. सरकारें आईं गयीं (कुंडलिया)

798. सरकारें आईं गयीं (कुंडलिया)

सरकारें  आईं   गयीं, बेड़ी   सकीं   न  काट।
दूरी  राजा-रंक  की, तिल भर  सकीं न पाट।
तिल भर सकीं न पाट, जाति-धर्मों की खाई।
उलटे  इनने   ऊँच-नीच   की   आग  लगाई।
न्याय कभी ना मिला, मिलीं केवल फटकारें।
सब  नेता   हैं  एक, एक  सी  सब  सरकारें।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.07.2019
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Tuesday, July 09, 2019

797. है प्रीत की ये ही रीत सदा (मुक्तक)

797. है प्रीत की ये ही रीत सदा (मुक्तक)


है  प्रीत  की  ये  ही  रीत  सदा, इसमें  दुख  ज्यादा, खुशियाँ कम।
ऊपर   से   हँसना  पड़ता, अंदर  से  अंतर रहता नम।
घर फूँक तमाशा देख सके, तब ही तू इसमें डाल कदम।
उल्फत  इतनी  आसान  नहीं, हँस-हँसकर पीना पड़ता गम।


रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.07.2019
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796. पानी-पैसा कीमती (कुंडलिया)

796. पानी-पैसा कीमती (कुंडलिया)

पानी - पैसा   कीमती,  मत   करिए   बर्बाद।
इनके बिन यह  जिंदगी, रह न  सके आबाद।
रह न  सके  आबाद, जान  पर  संकट आए।
जब नहिं हों ये साथ, मनुज को कौन बचाए।
पानी बिन चल सके, नहीं दो दिन ज़िंदगानी।
मत   करिए  बर्बाद,  बचाओ   पैसा - पानी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.07.2019
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Monday, July 08, 2019

795. कभी राम के नाम पर (कुंडलिया)

795. कभी राम के नाम पर (कुंडलिया)

कभी राम के  नाम  पर, कभी  धर्म के नाम।
जग को ठगते लूटते, कर-कर  स्वाँग तमाम।
कर-कर स्वाँग तमाम, धर्म को रोज निचोड़ें।
जालिम  ढोंगी धूर्त, लाश तक  ये नहिं छोड़ें।
ये सब  लंपट दास, जिस्म के  और जाम के।
केवल  खुद के  हुए, हुए नहिं  कभी राम के।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.07.2019
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Sunday, July 07, 2019

794. सुख-चैन लिया निर्मोही ने (मुक्तक)

794. सुख-चैन लिया निर्मोही ने (मुक्तक)

सुख-चैन  लिया  निर्मोही ने, दिनरात सजन मोय तरसावे।
जबरन उर के पट खोल सखी, पिय हिय के भीतर घुस जावे।
जब-जब  मैं मन कि बात करूँ, बतियन से बालम बिलमावे।
अंतर में  उठती  हूक  यही, मम प्रेम  नजर  क्यों नहिं आवे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.07.2019
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793. संकट की है यह घड़ी (कुंडलिया)

793. संकट की है यह घड़ी (कुंडलिया)

संकट की  है यह  घड़ी, यह  संक्रमण काल।
चुप मत बैठो  साथियो, विपदा है  विकराल।
विपदा है विकराल, लक्ष्य भी बेहद मुश्किल।
तम के बादल घिरे, नजर से ओझल मंजिल।
यह तो  है कर्तव्य, इसे  समझो  मत  झंझट।
है  संक्रमण  काल, बहुत  गहरा   है  संकट।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.07.2019
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792. किस्मत के पट नहिं (मुक्तक)

792. किस्मत के पट नहिं (मुक्तक)

किस्मत के पट नहिं खुल पाए, थक गए इन्हें हम खुला-खुला।
मन की कालिख ना धुल पाई, तन गला दिया सखि धुला-धुला।
भगवान न  मिलने  को आए, थक गए  नयन  ये बुला-बुला।
खुद  अपने  को   ही   भूल  गए, अपनों  की कमियाँ भुला-भुला।

तन-मन-धन उसको सौंप दिया, बिस्तर पर अपने सुला-सुला।
उसने मुझको रसहीन किया, तन में अपना रस घुला-घुला।
हर बार किया मैंने सौदा, तखरी में खुद को तुला-तुला।
फिर भी प्रिय रूठ रहा मुझसे, अपने मुँह को वह फुला-फुला।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.07.2019
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791. कंडा-सी सुलगत है (मुक्तक)

791. कंडा-सी सुलगत है (मुक्तक)

कंडा-सी  सुलगत है विरहन, तड़पत है जीती जर-जर के।
पिय  का  पथ  रोज  निहारत है, अँखियन  में  सपने भर-भर के।
कामिन चौकन्नी सहमी-सी, घर से निकसत है डर-डर के।
रड़ुआ   देखें,  चटकारे  लें, अधरों  पर रसना  धर-धर के।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.07.2019
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Saturday, July 06, 2019

790. हमरे जीवन की नियति यही (मुक्तक)

790. हमरे जीवन की नियति यही (मुक्तक)

हमरे जीवन  की  नियति  यही, जिंदा  रहते हम मर-मर के।
सर्दी में गलाऐं तन अपना, गर्मी  में जियें हम जर-जर के।
कबहूँ भर पेट न अन्न मिले, हारे हम मेहनत कर-कर के।
पैंतिस में पैंसठ के लगते, खाँसत हैं अब हम डर-डर के।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.07.2019
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789. आप उड़ाते खिल्लियाँ (कुंडलिया)

789. आप उड़ाते खिल्लियाँ (कुंडलिया)

आप  उड़ाते  खिल्लियाँ, काहे रोज हुजूर।
क्यों  सेठों के  संग में, क्यों  हमसे  हो दूर।
क्यों  हमसे  हो  दूर, समझते  काहे  अंधा।
उनसे  चमकें  आप, आप से उनका धंधा।
सिर्फ चुनावी दिनों, याद  हम सब हैं आते।
वरना पाँचौ साल, खिल्लियाँ आप उड़ाते।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.07.2019
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Friday, July 05, 2019

788. जल को भर के (दुर्मिल सवैया)

788. जल को भर के रमणी निकली (दुर्मिल सवैया)

जल को भर के रमणी निकली, मटकी निज कम्मर पे धर के।
जस नीर नहीं सिगरा जग ही, कमनीय चली घट में भर के।
जल का, थल का, जड़-चेतन का, सबका सुख-चैन चली हर के।
मत पूछ अरे किसको-किसको, ललना निष्प्राण चली कर के।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.07.2019
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Thursday, July 04, 2019

787. जो कल तक थे (मुक्तक)

787. जो कल तक थे (मुक्तक)

जो कल तक थे चोर-उच्चक्के, दौलत भरें करोड़ों की।
देशभक्त  अपमानित  होते, जय-जय होय भगोड़ों की। 
चहुँदिश मौज  निकम्मे करते, मेहनतकश  भूखे मरते।
गधे दुलत्ती मार रहे हैं, देह कुट रही घोड़ों की।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
03.07.2019
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