676. नहीं छुपाये छुपे आचरण (मुक्तक)
नहीं छुपाये छुपे आचरण, अक्सर बाहर आता है।
जिसको जो भी खाना होता, वह उसको ही खाता है।
इसमें कैसी हैरानी है, इसमें कौन अचम्भा है।
कुत्तों गीदड़ और सियारों, को जूठन ही भाता है।
चाटुकार तो चारण होता, स्वामी के गुण गाता है।
हाय मीडिया क्या मजबूरी, जो तू गाल बजाता है।
रोज - रोज बेढंगी बहसें, बेमतलब की चर्चाएं।
देख-देख ये रोज परी भर, खून सूख मम जाता है।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.01.2019
*****
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.