एक बार एक पुरोहित ने एक गरीब किसान से कहा था कि अगर वह एक दो गाएं दान कर दे तो उसे उसकी दरिद्रता से मुक्ति मिल जाएगी। उस समय वह बेचारा गरीबी के कारण यह सब न कर सका और बेचारा मन मसोस कर रह गया।
लेकिन उसे भगवान पर पूरा भरोसा था कि वह कभी न कभी उसकी सुधि जरूर लेगा। इसी बीच नई सरकार आयी और उसकी साधना पूरी होने का मार्ग प्रशस्त हुआ। जब गाँवों में चारो ओर गायों की बाढ़ आ गयी तो उसे एक युक्ति सूझी कि अब अच्छा समय है क्यों न 20-25 गायों का दान कर दिया जाय। इसी उद्देश्य से वह अपने पुरोहित के घर गया और कहा कि भगवन जो धर्मकर्म मैं पूर्व में न कर सका उसे करना चाहता हूँ। आपकी इच्छा हो तो मैं जी भरकर दान करना चाहता हूँ। पुरोहित जी बहुत खुश हुए और राजी हो गए। इसी पर पुरोहित और यजमान के वार्तालाप पर एक कुंडलिया छंद।
687. श्रद्धा मुझमें राखिए (कुंडलिया)
श्रद्धा मुझमें राखिए, जी भर करिये दान।
स्वर्ण रजत धन संपदा, जो भी हो श्रीमान।
जो भी हो श्रीमान, हाथ पर लाकर धरिये।
हिचिकिचाउ अब नाँय, कार्य शीघ्रतम करिये।
दस बछियां दस ठल्ल, बैल दस, दस हैं वृद्धा।
ये चालिस ले जाउ, नाथ इतनी है श्रद्धा।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.01.2019
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