678. धूर्त भेड़िये खुले घूमते (मुक्तक)
धूर्त भेड़िये खुले घूमते, खाल ओढ़कर गौओं की।
और हंस जयकार कर रहे, गिद्ध चील अरु कौओं की।
झरकटियों को उचक सलामी, देते हैं सागौन खड़े।
नतमस्तक हो आज सवाये, स्तुति करते पौओं की।
रणवीर सिंग 'अनुपम
06.01.2919
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गौओं की - गायों की
सवाया - सवा गुना
पौआ - चौथाई
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