Sunday, January 20, 2019

695. खिला तबस्सुम लब हँसें (कुंडलिया)

695. खिला तबस्सुम लब हँसें (कुंडलिया)

खिला  बस्सुम  लब  हँसें, नयनन  छलके नेह।
जो   देखे  आहें   भरे,  भूल  जाय  निज  गेह।
भूल  जाय  निज  गेह, हुश्न  का  ऐसा जलवा।
खुला छोड़ दो अगर, करा दे  चहुँदिश बलवा।
गुल गुलाब गुलफाम, सभी के सब हैं गुमसुम।
देख रूप लावण्य,अधर बिच खिला तबस्सुम।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
19.01.2019
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