688. कहे मेढकी बावले (कुंडलिया)
एक बार गंगा किनारे पंडित जी प्रवचन दे रहे थे और लोगों को गंगा स्नान का महत्व बता रहा थे। वही एक बंदर भी प्रवचन सुन रहा था। पण्डित जी ने कहा कि जो आने वाले महाकुम्भ के शुभ महूर्त में स्नान करेगा उसके सारे दुख दूर हो जाएंगे। मनुज तो मनुज अगर इस अवसर पर कोई जानवर भी स्नान कर ले तो वह भी मोक्ष को प्राप्त हो जाएगा।
बंदर ने यह बात जाकर बंदरिया को बताई। बंदरिया ने अपनी व्यवहारिक बुद्धि लगाई और समझाया कि अरे कहाँ तुम भी इंसानों की बातों आ गए। ऐसा नहीं होता है। कहीं ठंड-बंड लग गयी और तुम्हें कुछ हो हुआ गया तो मेरा क्या होगा। पर बंदर नहीं माना। वह बंदरिया को अपने संग लेकर सुबह-सुबह ही गंगा तट पर पहुँच गया और बंदरिया से कहा चल महूर्त निकला जा रहा जल्दी से स्नान कर लेते हैं। तब बंदरिया ने कहा मैं तो तुम्हारी धर्मपत्नी हूँ। पहले तुम नहाओ, मैं तुम्हारे बाद में ही नहाऊंगी। बंदर ने उत्साह में कड़कते पानी में 10-12 डुबकियां लगा डाली। अब वह ठण्ड से कंपकंपाने लगा और उसकी हिम्मत जबाब दे गई। फिर वह सिकुड़कर बंदरिया के पास आकर बैठ गया और टकटकी लगाकर उन लोगों को देखने लगा जो मोटे-मोटे शाल और स्वेटर ओढ़े भजन पूजन में लगे हुए थे।
बंदर की मूर्खता देख किनारे पर बैठी मेढकी जोर-जोर से हँसती हुई बोली। अरे बौरे! तू भी धूर्तों की बातों में आ गया। भला गंगा नहाने से मोक्ष मिलता तो मैं तो कब की तर गयी होती। मेरा तो घर ही गंगा जी में है। इसी वार्तालाप पर एक कुंडलिया छंद।
688. कहे मेढकी बावले (कुंडलिया)
कहे मेढकी बावले, काहे देता प्रान।
कौन भला जग में तरा, कर गंगा असनान।
कर गंगा असनान, खुद नहीं मैं तर पाई।
माँ गंगा के नाम, लोग कर रहे कमाई।
ओ बौरे नादान, देख मत लगा टकटकी।
असनानों से तरण, हुआ कब कहे मेढकी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.01.2019
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