Thursday, January 24, 2019

702. जरूँ शाम से रात तक (कुंडलिया)

702. जरूँ शाम से रात तक (कुंडलिया)

जरूँ शाम से  रात तक, रातहिं  आधी रात।
बार-बार  मैं  बारती, बार-बार   बुझ  जात।
बार-बार बुझ जात, ठिठोली  तुमको  सूझे।
बेकल  हिय से हाय, कौन क्षण  नाहीं जूझे।
बार-बार थक गई, उबर ना सकी  काम से।
कंडे माफिक रोज भोर तक, जरूँ शाम से।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.01.2019
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