699. चंचल नजरें चंचला (कुंडलिया)
चंचल नजरें चंचला, चितवत चारहुँओर।
चुनरी को लहरा रही, उँगलिन दाबे छोर।
उँगलिन दाबे छोर, देह जा सुथरी-सुथरी।
ज्यों कोई अप्सरा, स्वर्ग से धरती उतरी।
उन्नत उभरे शृंग, और यह बेसुध अंचल।
चितवत चारहुँओर चंचला, नजरें चंचल।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
21.01.2019
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