Monday, January 21, 2019

699. चंचल नजरें चंचला (कुंडलिया)

699. चंचल नजरें चंचला (कुंडलिया)

चंचल  नजरें  चंचला, चितवत चारहुँओर।
चुनरी को  लहरा रही, उँगलिन दाबे छोर।
उँगलिन  दाबे छोर, देह जा सुथरी-सुथरी।
ज्यों  कोई  अप्सरा, स्वर्ग से धरती उतरी।
उन्नत उभरे शृंग, और  यह  बेसुध अंचल।
चितवत  चारहुँओर चंचला, नजरें चंचल।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
21.01.2019
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