Thursday, January 10, 2019

683. कहे पतीली निज व्यथा (कुंडलिया)

683. कहे पतीली निज व्यथा (कुंडलिया)

कहे पतीली  निज व्यथा, सदा  रहूँ अधपेट।
पूस  होय  या  जेठ  हो, रखती  उदर समेट।
रखती उदर  समेट, रोज  चमचे  से  लड़ना।
अन्नपूर्णा  हाथ, अंत  में  कुछ  नहिं  पड़ना।
चाहे  बथुआ  साग, बने  या  दाल   रसीली।
पर पूरी नहिं पड़ी, कहे निज व्यथा पतीली।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.01.2019
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