मत्त सवैया (राधेश्यामी छंद)
मैं जानत दूध-दही कारन, नहीं चीर गहो है नटनागर।
चाखन को माखन जो चाहो, दधि भरी धरी है जा गागर।
जानति हूँ तुमरे जिय की मैं, तुम काहे ऐतिक रार करो।
गोरस के मिस जो रस चाहो, सो रस हैं तुमकों नाय धरो।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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चीर-वस्त्र, गहो-पकड़ा, जिय-मन, ऐतिक-इतनी, रार-झगड़ा, गोरस- दूध, दही, मिस-बहाने, रस-इन्द्रियों का रस, नाय-नहीं।
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