Sunday, October 18, 2015

115. नंदलाल घेरो जब (कवित्त)

नोकझोंक

नंदलाल घेरो जब, राधारानी कहे तब,
माँग-माँग दधि खात, नेकु न लजात हो।

रोज-रोज तंग करौ, काहे मान भंग करौ,
गोपियों पे काहे ऐसे, रौब को जमात हो।

बहियाँ को छोड़ों श्याम, ऐसे न मरोड़ो श्याम,
नाजुक कलाई मेरी, काहे ऐंठे जात हो।

कछु तो लिहाज करो, प्रीत की तो लाज करो,
अपनी सखी को कान्हा, कहे यूँ सतात हो।। 

रणवीर सिंह (अनुपम)
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