Sunday, October 18, 2015

122. मदभरी पुरबाई (कवित्त)

विरहणी

मदभरी पुरबाई, तन लेत अँगड़ाई,
पिउ-पिउ मोर रट, दिल को जरात है।

बरसे बदरिया है, छाई ये अंधरिया है,
तड़पे बिजुरिया है, मन घबरात है।

भीगी लट झूम रही, मुख-ओंठ चूम रही,
सावन की बूंदे सखि, आग कूँ लगात है।

नींद नहीं आये सखि, याद तड़फाये सखि,
पिया बिन सेज मोकूँ, नेकु न सुहात है।। 

रणवीर सिंह (अनुपम)
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