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Sunday, October 04, 2015
109. डर लगता पहरेदारों से (मुक्तक)
कब डरता नाविक तूफां से, कब डरता ये मझधारों से।
सच्चा जो पथिक हुआ करता, वो डरता है कब खारों से।
दुश्मन से आज नहीं है डर, डर आस्तीन के साँपों से।
डर चोर, ठगों से नहिं लगता, डर लगता पहरेदारों से।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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