Sunday, October 18, 2015

116. सावन की ऋतू आई (कवित्त)

यौवन वर्षा

सावन की ऋतु आई, चहुँओर घटा छाई,
जड़ और चेतन पे, छा रही जवानी है।

दूधिया ये देह लिए, अँखियों में नेह लिए,
मुख पर छाई आभा, प्रेम की निशानी है।

चीर में लिपट रही, खुद में सिमट रही,
लगता है सारा जग, मोहने की ठानी है।

गदराया तन तेरा, उभरा जुबन तेरा,
दरिया में मत घुस, आग का लगानी है।। 

रणवीर सिंह (अनुपम)
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