Sunday, October 11, 2015

112. जिस दिन जीत जाय (कवित्त)

112. जिस दिन जीत जाय (कवित्त)

जिस  दिन जीत जायें  फिर मुख  न दिखायें,
सुध  लेने  जनता  की,  आते  नहीं  नेता  ये।

कफ़न  खदान  खायें   सड़कें   पहाड़  खायें,
रोटी  साग  दाल-भात,  खाते  नहीं  नेता ये।

जब भी ये  जेल जायें, अपना  बिठाल  जायें,
कुरसी को  छोड़ खाली, जाते  नहीं  नेता ये।

खुद  का  ईमान  बेचें,  देश का  सम्मान  बेचें,
बेचने  से   चैन  कभी,  पाते   नहीं   नेता  ये।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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