Sunday, October 18, 2015

121. छोटी-छोटी बात को जो (कवित्त)

घटिया सोच

छोटी-छोटी बात को जो, सह नहीं पाते आप, 
काहे के हो धीर वीर, मुझको बताइये।

एक जाति, एक धर्म, एक वर्ण, एक लिंग,
ऐसी ओछी, हीन सोच, मन से भगाइए।

चाहिए अमन खुशहाली इस देश में जो,
आदमी हो आदमी को, गले से लगाइये।

घात-प्रतिघात नहीं, विष बुझी बात नहीं,
जासे बचो खुद और, देश को बचाइये।। 

रणवीर सिंह (अनुपम)
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