Sunday, October 18, 2015

124. पूरब से काले घन (कवित्त)

वर्षा ऋतु

पूरब से काले घन, उमड़-घुमड़ चले,
गड-गड़ करत नगाड़े से बजात हैं।

बाल-बालिकाओं का न, पूछो अजी हाल अब,
नर-नारी, पशु-पक्षी, सबको डरात हैं।

काले-भूरे मेघ सब, सावन में मस्त दिखें,
नीर को समेटे उर, फूले न समात हैं।

जैसे हो पुरुष निज, भामिनी को लिपटाये,
चपला को अंक भरे, नेक न लजात हैं।। 

रणवीर सिंह (अनुपम)
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