Sunday, October 18, 2015

120. बार-बार तुमको मैं करता (कवित्त)

सावधान

बार-बार तुमको मैं, करता हूँ सावधान,
नाजुक ये नन्ही डाल, और न लचाइये।

कुशल, अमन और, देश की फिकर है जो,
शोषितों-गरीबों को न, ऐसे यूँ सताइये।

चाहते बचाना गर, आलीशान महलों को,
कृषकों के खेत और, झोपड़ी बचाइये।

देखना जो चाहते हो, देश को शिखर पे तो,
भारत औ इंडिया का, अंतर मिटाइये।। 

रणवीर सिंह (अनुपम)
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