मापनी-122 122 122 122
ते'री आँख का जो इशारा न होता।
हमें ये जहाँ फिर गवारा न होता।।
मे'रे आँसुओं की ही' तासीर है ये,
नहीं तो समुन्दर ये' खारा न होता।।
अगर हम से' आशिक न होते यहाँ पर,
हसीनों तुम्हारा गुजारा न होता।।
किसे देखती आँख मल-मल के' दुनियाँ?
अगर तुमको' हमने निखारा न होता।।
हमीं से तुम्हारे जहाँ में है' रौनक,
हमारे बिना ये नज़ारा न होता।।
कयामत धरा पर कभी यूं न आती,
अगर हुश्न को यूँ सँवारा न होता।
अरे नासमझ डूबना चाहता क्यों?
मुहब्बत में कोई किनारा न होता।।
यहाँ चाक दिल खुद ही' सिलना पड़ेगा,
सिवा इसके कोई भी' चारा न होता।।
ते'री बात 'अनुपम' अगर मान लेता,
हुआ हादसा फिर दुवारा न होता।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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