Wednesday, November 04, 2015

134. सारा दिन निराहार (कवित्त)

करवा चौथ

सारा  दिन  निराहार,  घर  के करे है कार,
चारो ओर प्रीत रूपी, मधु को है  घोलती।।

मुखड़े पे हास लिए, आस औ विश्वास लिए,
मन में उमंग लिए, हँसती है बोलती।।

सजधज हो तैयार, करके सभी श्रृंगार,
मन में पिया की छवि, खुश हो के डोलती।।

मॉंग ये सिंदूरी रहे, पति से न दूरी रहे,
चाँद को निहार कर, भीष्म व्रत खोलती।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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