Wednesday, November 04, 2015

135. इस तरह मत दूर जाकर बैठिये।

इस  तरह  मत  दूर  जाकर  बैठिये।
बैठना  तो   पास  आकर   बैठिये।।

सामने  जब   आ  गए  तो  अर्ज  है,
आज  तो   पर्दा  उठाकर  बैठिये।।

यूँ  हमेशा  छोटी'  छोटी   बात  पर,
गुलबदन  मत, मुँह फुलाकर बैठिये।।

हर किसी की बात को दिल पर न लो,
और  मत  दिल से लगाकर  बैठिये।।

गैर   की  नापाक  हरकत  के  लिये,
आप मत दिल को दुखाकर बैठिये।।

रंज, गम हम से छुपाने  के   लिए,
इस तरह  मत  मुस्कराकर  बैठिये।।

यह मुनासिब आप को बिलकुल नहीं,
हर  किसी  के पास जाकर बैठिये।।

जानता  हूँ  पर  न  इतना  जानता,
हाथ  कंधे   से   हटाकर  बैठिये।।

एक  दिन  चहुँओर  होगी  रोशनी,
प्रेम  अंतर  में  जगाकर   बैठिये।।

जो  सभा  में  कद  बढ़ाना  चाहते,
यह गुरूर-ए-कद घटाकर  बैठिये।।

धर्म  औ  तहजीब  के नामों पे' मत,
आस्तीनों   को  चढ़ाकर  बैठिये।।

आ मिले जब नेक मकसद के लिए,
दूरियों को अब  मिटाकर  बैठिये।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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