Wednesday, November 18, 2015

151. जिसको ढूँढा जिधर

जिसको ढूँढा जिधर, वो उधर न मिला,
लाख ढूँढा मगर उनका घर न मिला॥
 
यूं तो मिलते रहे ज़िंदगी बहुत,
हम जुबां न मिला, हमसफर न मिला॥
 
जब भी मतलब रहा लोग आते रहे,
यूँ ही आकर के कोई इधर न मिला॥
 
जख्म पे जख्म खाता रहा आज तक,
दर्द महसूस हो वो असर न मिला॥
 
तेरी फितरत से वाकिफ हूँ अच्छी तरह,
मेरे साथी तूँ ऐसे नज़र न मिला॥ 
 
लोग बिकते रहे, मैं नहीं बिक सका,
मुझमें बस एक ये ही हुनर न मिला॥
 
रणवीर सिंह (अनुपम)
      *****

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.