जिसको ढूँढा जिधर, वो उधर न मिला,
लाख ढूँढा मगर उनका घर न मिला॥
लाख ढूँढा मगर उनका घर न मिला॥
यूं तो मिलते रहे ज़िंदगी बहुत,
हम जुबां न मिला, हमसफर न मिला॥
हम जुबां न मिला, हमसफर न मिला॥
जब भी मतलब रहा लोग आते रहे,
यूँ ही आकर के कोई इधर न मिला॥
यूँ ही आकर के कोई इधर न मिला॥
जख्म पे जख्म खाता रहा आज तक,
दर्द महसूस हो वो असर न मिला॥
दर्द महसूस हो वो असर न मिला॥
तेरी फितरत से वाकिफ हूँ अच्छी तरह,
मेरे साथी तूँ ऐसे नज़र न मिला॥
मेरे साथी तूँ ऐसे नज़र न मिला॥
लोग बिकते रहे, मैं नहीं बिक सका,
मुझमें बस एक ये ही हुनर न मिला॥
मुझमें बस एक ये ही हुनर न मिला॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
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