आने से उनके आ गया, मौसम बहार का,
जाने लगे तो छा गया, मौसम तुषार का॥
जाने लगे तो छा गया, मौसम तुषार का॥
धीरे से मुस्कराके, यों झुल्फ झटकना,
मुख को घुमाना जैसे हो, ग्राहक उधार का॥
मुख को घुमाना जैसे हो, ग्राहक उधार का॥
पानी को उनने छू लिया, दरिया उफन गया,
नदियों में जैसे आ गया, मौसम ज्वार का॥
नदियों में जैसे आ गया, मौसम ज्वार का॥
बिस्तर की सिलवटों ने, सब कुछ बता दिया,
आलम रहा रात भर, बस इंतजार का॥
आलम रहा रात भर, बस इंतजार का॥
आँखों में उनके आलस, अंगों में सुस्तियाँ,
जैसे नशा चढ़ा हो, अब भी खुमार का॥
जैसे नशा चढ़ा हो, अब भी खुमार का॥
छवि को निहार कर, दर्पण चटक गया,
टूटा हो सब्र जैसे, किसी बेकरार का॥
टूटा हो सब्र जैसे, किसी बेकरार का॥
रणवीर सिंह (अनुपम)
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