बताओ एक तो खूबी, करें हम तब वरण लोगो,
तुम्हारे तारने से अब, नहीं होगा तरण लोगो।
जरा सी बात को लेकर, न करिये रोज प्रदर्शन,
करो मत इस तरह अनशन, यहाँ पर आमरण लोगो।
नहीं इतने भी' हैं काबिल, ढिढ़ोरा पीटते जितना,
हकीकत देखिये इनकी, हटाकर आवरण लोगों।
कफ़न, नदियाँ, खदानें, ईंट-पत्थर और ये चारा,
इसी से आजकल करते, उदर का ये भरण लोगो।
सदा से रहनुमा बनकर, बनाते आ रहे हमको,
जरूरत के समय इनने, हमें कब दी शरण लोगो?
दिखा सपने तरक्की के, हमारी नींद भी ले ली,
किया है किस तरह देखो, जमीनों का हरण लोगो।
बिछौना है जमीं मेरी, खुला ये आसमां चद्दर,
मे'रा घर-बार तो बस है, यही वातावरण लोगो।
हितैषी हो नहीं सकते, धरम को बेंचने वाले,
अरे पाखंडियों के तुम, पखारो मत चरण लोगों।
कुटिल, कामुक, दुराचारी, मठों को घेर कर बैठे,
इन्हीने है किया देखो, धरम का ये क्षरण लोगो।
दबाकर शत्रु की गर्दन, चढ़ोगे वक्ष पर जिस दिन,
उसी दिन विश्व से आतंक का होगा मरण लोगों।
न कोई जन्म से ऊँचा, न कोई जन्म से नीचा,
इसे तो तय किया करता, सदा ही आचरण लोगो।।
रणवीर सिंह (अनुपम)
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