505. अंधे बाँटें रेवड़ी (कुण्डलिया)
अंधे बाँटें रेवड़ी, अपन-अपन कौं देंय।
रामप्यारी, नैनसुख, नाच - नाचकर लेंय।
नाच-नाचकर लेंय, खुशी से झूमें गाएं।
असल जरूरतमंद, देखते मुँह रह जाएं।
इधर-उधर सब जगह, चल रहे ये ही धंधे।
अपन - अपन कौं देंय, रेवड़ी बाँटें अंधे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.01.2018
*****
505. अंधे बाँटे रेवड़ी (कुण्डलिया)
अंधे बाँटे रेवड़ी, अपन-अपन को देंय।
रामप्यारी, नैनसुख, नाच - नाच के लेंय।
नाच-नाच के लेंय, खुशी से फूले जावें।
जय चाचा की करे, मस्त हो झूमें गावें।
जिधर देखिए उधर, चल रहे ये ही धंधे।
अपने को ही देत, बाँटते फिरते भी अंधे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.01.2018
*****
No comments:
Post a Comment
Note: Only a member of this blog may post a comment.