Sunday, January 07, 2018

483. ज्यों ही धन-दौलत घर आई (मुक्तक)

483. ज्यों ही धन-दौलत घर आई (मुक्तक)

ज्यों  ही  धन-दौलत  घर  आई,  आकर  दर  पर सरकार गिरे।
बटुए की' खनक सुन-सुनकर के, हर दिन घर आ दो-चार गिरे।
मुखिया-सुखिया,  हाकिम-साकिम, सब  आकर  हमरे द्वार गिरे।
हा'य   ऐसी   जेब   फटी   हमरी,  सिक्कों   सँग रिस्तेदार गिरे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.01.2018
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