483. ज्यों ही धन-दौलत घर आई (मुक्तक)
ज्यों ही धन-दौलत घर आई, आकर दर पर सरकार गिरे।
बटुए की' खनक सुन-सुनकर के, हर दिन घर आ दो-चार गिरे।
मुखिया-सुखिया, हाकिम-साकिम, सब आकर हमरे द्वार गिरे।
हा'य ऐसी जेब फटी हमरी, सिक्कों सँग रिस्तेदार गिरे।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.01.2018
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