Monday, January 29, 2018

503. वो ही' डुबोय रहे हैं हमकौं (मुक्तक)

503. मत्तगयंद सवैया के वाचिक भार पर आधारित एक मुक्तक।

वो  ही'  डुबोय  रहे  हैं  हमकौं,  जिनको'  बनाया हमने' खिबैया।
भूख से' रोबत, बिलखत, तड़पत, जनता कर रहि दैया-दैया।
नाच रहे  हमरी  लाशों पर, नेता  कर-कर, था-था थैया।
संग में' चारण पाठ करत हैं, शान में'  उनकी गात सवैया।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.01.2018
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