503. मत्तगयंद सवैया के वाचिक भार पर आधारित एक मुक्तक।
वो ही' डुबोय रहे हैं हमकौं, जिनको' बनाया हमने' खिबैया।
भूख से' रोबत, बिलखत, तड़पत, जनता कर रहि दैया-दैया।
नाच रहे हमरी लाशों पर, नेता कर-कर, था-था थैया।
संग में' चारण पाठ करत हैं, शान में' उनकी गात सवैया।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.01.2018
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