Tuesday, January 23, 2018

493. हम दो रचनाकार हैं (कुण्डलिया)

493. हम दो रचनाकार हैं (कुण्डलिया)

हम  दो  रचनाकार  हैं, मैं  पद  हूँ,  तुम माथ।
पर तुम्हरी कृति देखकर, लाज आ रही नाथ।
लाज आ  रही नाथ, तुम्हारे  इन  पुतलों  पर।
अत्याचारी  दुष्ट,  जुल्म  करते   निबलों  पर।
करें सुनिश्चित नाथ, दोष कृतियों में  कम हो।
कुम्भकार हैं सकल जगत में, केवल  हम दो।

रणवीर सिंह 'अनुपम
22.01.2018
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