498. कुछ दोहे
दोहा अनुपम छंद है, मात्रा चौबिस भार।
चार चरण दो पंक्ति में, है इसका विस्तार।
जग में सबको एक सा, समझ न ओ नादान।
एक से बढ़कर एक हैं, दुनिया में विद्वान।
'अनुपम' जो आता तुझे, वह तो है तृणभार।
जिसको तू नहिं जानता, वो पर्वत उनहार।
मैं - मैं "अनुपम" मत करो, मैं से बने न बात।
मैं से जिस क्षण हम बनें, काम सहज हो जात।
रणवीर सिंह (अनुपम)
27.01.2018
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