Saturday, January 27, 2018

498. कुछ दोहे

498. कुछ दोहे

दोहा  अनुपम    छंद  है,  मात्रा   चौबिस  भार।
चार  चरण   दो  पंक्ति  में,  है  इसका  विस्तार।

जग में  सबको  एक सा, समझ न  ओ  नादान।
एक  से   बढ़कर  एक  हैं,  दुनिया   में  विद्वान।

'अनुपम'  जो  आता  तुझे, वह तो  है  तृणभार।
जिसको  तू  नहिं   जानता,  वो  पर्वत  उनहार।

मैं - मैं  "अनुपम"  मत करो, मैं से  बने  न  बात।
मैं से जिस  क्षण हम बनें, काम सहज हो जात।

रणवीर सिंह (अनुपम)
27.01.2018
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