Tuesday, January 30, 2018

505. अंधे बाँटें रेवड़ी (कुण्डलिया)

505. अंधे बाँटें रेवड़ी (कुण्डलिया)

अंधे  बाँटें  रेवड़ी, अपन-अपन  कौं  देंय।
रामप्यारी, नैनसुख, नाच - नाचकर  लेंय।
नाच-नाचकर  लेंय, खुशी  से  झूमें  गाएं।
असल जरूरतमंद, देखते मुँह  रह  जाएं।
इधर-उधर सब जगह, चल रहे ये ही धंधे।
अपन - अपन कौं  देंय,  रेवड़ी  बाँटें अंधे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.01.2018
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505. अंधे बाँटे रेवड़ी (कुण्डलिया)

अंधे  बाँटे  रेवड़ी, अपन-अपन  को  देंय।
रामप्यारी, नैनसुख, नाच - नाच  के  लेंय।
नाच-नाच  के  लेंय, खुशी  से  फूले जावें।
जय  चाचा  की करे, मस्त हो  झूमें  गावें।
जिधर  देखिए उधर, चल रहे  ये  ही धंधे।
अपने को  ही देत, बाँटते फिरते भी अंधे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.01.2018
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Monday, January 29, 2018

504. तुमने देखा नहीं भूख को (मुक्तक

सार छंद (16/12) पर आधारित एक मुक्तक।

तुमने  देखा  नहीं  भूख  को,  नहीं  बेकली  देखी।
भूखे - प्यासे  अधनंगों  की,  नहीं   ज़िंदगी  देखी।
नाथ  लगाओ  नारे  यूँ  मत, यूँ नहिं  हमें  बनाओ।
कड़क ठंड में ठिठुरत काँपत, नहीं  बेबसी  देखी।

रणवीर सिंह (अनुपम)
29.01.2018
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503. वो ही' डुबोय रहे हैं हमकौं (मुक्तक)

503. मत्तगयंद सवैया के वाचिक भार पर आधारित एक मुक्तक।

वो  ही'  डुबोय  रहे  हैं  हमकौं,  जिनको'  बनाया हमने' खिबैया।
भूख से' रोबत, बिलखत, तड़पत, जनता कर रहि दैया-दैया।
नाच रहे  हमरी  लाशों पर, नेता  कर-कर, था-था थैया।
संग में' चारण पाठ करत हैं, शान में'  उनकी गात सवैया।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.01.2018
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Sunday, January 28, 2018

502. जनता है उपभोक्ता (कुण्डलिया)

502. जनता है उपभोक्ता (कुण्डलिया)

जनता   है    उपभोक्ता,   राष्ट्रवाद   है   ब्रांड।
देशभक्ति  के  नाम पर,  चहुँदिश  हत्याकांड।
चहुँदिश   हत्याकांड,   रोज    होती  लुटपाटें।
खुश हो नेता फसल, कौलियाँ  भर-भर काटें।
राजनीति  का  काम, जाति-धर्मों  से  चलता।
मरती  है  तो   मरे,  देश   की  भोली  जनता।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.01.2018
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Saturday, January 27, 2018

501. बातैं हाथी पाइए (कुण्डलिया)

501. बातैं हाथी पाइए (कुण्डलिया)

बातैं    हाथी    पाइए,   बातैं   हाथी    पाँव।
बिना बात सम्मान नहिं, नगर होय  या गाँव।
नगर होय  या  गाँव, बात की महिमा न्यारी।
बात  बिगड़ जो जाय, त्याग दे दुनिया सारी।
ना  ही  दिवस  सुहाय, चैन  से  कटे  न रातैं।
बात-बात  पर  बात,  बात  बिन  होवें  बातैं।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.01.2018
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500. छुआछूत के रोग से (कुण्डलिया)

500. छुआछूत के रोग से (कुण्डलिया)

छुआछूत के रोग से, ग्रसित आज  भी देश।
दूर न इसको कर सके, ब्रह्मा  विष्णु महेश।
ब्रह्मा  विष्णु  महेश,  धर्म  के  कई  प्रणेता।
जो  भी  आया  रहा,  बढ़ावा  इसको  देता।
मनुवादी  यह  सोच, और  दृष्टांत  भूत  के।
हितकर नहिं परिणाम, होयँगे छुआछूत के।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.01.2018
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499. भूल दुबारा मत करो (कुण्डलिया)

499. भूल दुबारा मत करो (कुण्डलिया)

भूल  दुबारा  मत  करो,  डालो  इस  पर धूल।
बहुत ज़लालत  सह चुके, मंदिर  जाओ भूल।
मंदिर  जाओ भूल,  ज्ञान  का  मारग  खोजो।
शिक्षित बन वह करो, देश के हित  में हो जो।
सोचो  अब  तक  कौन, देवता  आय  उबारा।
इनके  चक्कर  लगा, भूल  मत  करो  दुबारा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.01.2018
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498. कुछ दोहे

498. कुछ दोहे

दोहा  अनुपम    छंद  है,  मात्रा   चौबिस  भार।
चार  चरण   दो  पंक्ति  में,  है  इसका  विस्तार।

जग में  सबको  एक सा, समझ न  ओ  नादान।
एक  से   बढ़कर  एक  हैं,  दुनिया   में  विद्वान।

'अनुपम'  जो  आता  तुझे, वह तो  है  तृणभार।
जिसको  तू  नहिं   जानता,  वो  पर्वत  उनहार।

मैं - मैं  "अनुपम"  मत करो, मैं से  बने  न  बात।
मैं से जिस  क्षण हम बनें, काम सहज हो जात।

रणवीर सिंह (अनुपम)
27.01.2018
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Friday, January 26, 2018

496. कितनी सुंदर देह जा (कुण्डलिया)

कोयल का बार-बार विवाह का प्रस्ताव टालने पर एक दिन उसने कौए से इसका कारण पूछा। इसी पर आज का कुण्डलिया छंद।

496. कितनी सुंदर देह जा (कुण्डलिया)

कितनी सुंदर देह जा, क्यों नहिं करत विवाह।
कौए  से   कोयल  कहे , देखूँ    तुम्हरी   राह।
देखूँ   तुम्हरी   राह,  बताओ  क्या  है  बाधा?
तब  कौए  ने  कहा,  सुनो  मेरी   प्रिय  राधा।
जब बिन शादी  काँव-काँव, जीवन में इतनी।
गर शादी  कर  लेंय, न  जाने   होवे  कितनी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.01.2018
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करत- करते

Thursday, January 25, 2018

495. मेरे ऊपर यह निशाना ठीक ना

495. मेरे ऊपर यह निशाना

मेरे ऊपर  यह   निशाना  ठीक  ना।
इस  तरह से तिलमिलाना ठीक ना।

रहने  दे   तू  आदमी   को  आदमी,
इसको' यूँ  ईश्वर  बनाना  ठीक  ना।

आप अपना  काम  करिये ठीक से,
और की कमियाँ  गिनाना ठीक ना।

हर्ष  औ  उत्कर्ष  का जब  वक्त हो,
मर्सिया  को   गुनगुनाना  ठीक ना।

बढ़ गया जो  प्यार  में तो  और बढ़,
हिचकिचाना लड़खड़ाना  ठीक ना।

थूकते  तो  थूक  पर   कायम  रहो,
थूककर  के  चाट  जाना  ठीक ना।

स्वयं  को   ऊँचा   बताने  के  लिए,
मेरु  को   टीला   बताना  ठीक ना।

आग  कब  अपना  पराया  देखती,
मान  जा  तीली  लगाना  ठीक ना।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.01.2018
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मेरु - एक पर्वत का नाम

494. मारकाट का खेल ये (कुण्डलिया)

494. मारकाट का खेल ये (कुण्डलिया)
"पदमावत" फ़िल्म जो पूरे देश में 25.01.2018 को रिलीज होने जा रही है, के ऊपर कई प्रदेशों (उत्तर प्रदेश, हरयाणा, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर आदि) में करणी सेना द्वारा की जा रही लूटपाट, तोड़फोड़, आगजनी और मारपीट पर एक कुण्डलिया छंद।

मारकाट  का  खेल  ये, यह  आतंकी  शोर।
गुंडे   निर्भय   हो  करें,   मारपीट  चहुँओर।
मारपीट  चहुँओर,  करन  की  है  आजादी।
आगजनी हो रही, किन्तु चुप खाकी-खादी।
को  है   जिम्मेदार,  हो   रही  लूटपाट  का।
किस दिन  होगा बंद, खेल ये मारकाट का।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.01.2018
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Tuesday, January 23, 2018

493. हम दो रचनाकार हैं (कुण्डलिया)

493. हम दो रचनाकार हैं (कुण्डलिया)

हम  दो  रचनाकार  हैं, मैं  पद  हूँ,  तुम माथ।
पर तुम्हरी कृति देखकर, लाज आ रही नाथ।
लाज आ  रही नाथ, तुम्हारे  इन  पुतलों  पर।
अत्याचारी  दुष्ट,  जुल्म  करते   निबलों  पर।
करें सुनिश्चित नाथ, दोष कृतियों में  कम हो।
कुम्भकार हैं सकल जगत में, केवल  हम दो।

रणवीर सिंह 'अनुपम
22.01.2018
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492. इक दिन एक कुम्हार (रोला छंद)

492. इक दिन एक कुम्हार (रोला छंद)

इक दिन  एक  कुम्हार  कहा ईश्वर से जाकर।
निज कृतियों की दशा देखिए तो प्रभु आकर।
आँख  बंदकर  रोज  रचे  जाते   हो  जिनको।
मानवता  से  नहीं  रहा  कुछ  मतलब इनको।

विश्व  रचयिता  रोज   बनाते   लाखों   सूरत।
किन्तु  ठीक  से  गढ़ो  बनाओ जो  भी मूरत।
मैं   हूँ   छोटा   किन्तु  काम आता है मुझको।
हरदम ठोंक - बजाय  ठीक से  रचता तुमको।

नाथ  लाज  आ  रही  तुम्हारे  इन  पुतलों पर।
अत्याचारी  दुष्ट   जुल्म   करते   निबलों  पर।
तुम्हरे  पुतले धर्म-जाति  पर निशदिन  लड़ते।
और  रोज आ  मम  पुतलों के चरण पकड़ते।

रणवीर सिंह 'अनुपम
22.01.2018
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Monday, January 22, 2018

491. है कौन सी मुसीबत (गीतिका)

दिगपाल छंद पर आधारित
मापनी - 221  2122  221  2122

491. है कौन  सी मुसीबत (गीतिका)

है कौन  सी मुसीबत, जो जिस्म  यह उघारा।
काहे  दिखा  रही  हो,  इस  देह  का नजारा।

पर्दे पे इस  तरह  क्यों, अंगों  की  ये नुमाइश,
सचमुच नहीं  है कोई, इसके  बगैर  न  चारा?

अपने बदन की इज्जत, खुद ही नहीं  करोगे,
क्यों  दूसरा  करेगा,  सम्मान  फिर  तुम्हारा?

सदियाँ  नहीं  युगों में, जाकर बना ये कपड़ा,
क्या सोचकर के इससे, यूँ कर रहीं किनारा?

इज्जत की बात है तो, इज्जत से रहना होगा,
इज्जत बगैर जग ने, इज्जत से कब निहारा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
20.01.2018
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Saturday, January 20, 2018

489. तुम जो निकल पड़े हो ऐसे (मुक्तक)

489. तुम जो निकल पड़े हो ऐसे (मुक्तक)

तुम जो निकल  पड़े हो ऐसे, ओढ़ लिहाफ, बहुत जल्दी से।
लगता सारी  कत्लगाह ही,  कर  दी  साफ, बहुत जल्दी से।
जितनी  तत्परता  से उनने,  केस सुना  औ खत्म किया है।
हमको तो गड़बड़ दिखती, कर दिया माफ, बहुत जल्दी से।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
18.01.2017
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Monday, January 15, 2018

488. न मंदिर को न मस्जिद को (मुक्तक)

488. न मंदिर को न मस्जिद को (मुक्तक)

न मंदिर को, न मस्जिद को, न छोड़ा चर्च गुरुद्वारा।
बजायीं   घंटियां  जाकर,  कई  मंत्रों  को  उच्चारा।
गरीबी आजतक  हमरी, जरा भी कम  न हो पायी।
धरम के  ठेकेदारों  सँग,  लगाया   रोज  जयकारा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.01.2018
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488. न मंदिर को न मस्जिद को (मुक्तक)

न मंदिर को, न मस्जिद को, न छोड़ा चर्च गुरुद्वारा।
बजायीं   घंटियां  जाकर,  कई  मंत्रों  को  उच्चारा।
गरीबी है  कि  रत्तीभर, न हमरी कम  है' हो  पायी।
धरम के इन  दलालों का, लगाया  रोज  जयकारा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.01.2018
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Sunday, January 14, 2018

487. करोड़ों देवता मिलकर (मुक्तक)

487. करोड़ों देवता मिलकर (मुक्तक)

करोड़ों  देवता  मिलकर  हमारा दुख  न  हर  पाये।
हजारों  मर  गये  घीसू  न  जर   पाये  न  तर पाये।
कई मौकों पे' सोचा था  चलो अब छोड़  दें दुनिया।
कफन की फिक्र के कारण न जी  पाये न मर पाये।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.01.2018
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486. दो प्रकार के लोग हैं (कुण्डलिया)

486. दो प्रकार के लोग हैं (कुण्डलिया)

दो प्रकार के  लोग हैं,  दो प्रकार  के  भक्त।
एक चैन  से  खा  रहे, एक  भूख  से  त्रस्त।
एक भूख  से  त्रस्त, मौत  को  चूम  रहे  हैं।
फटी  लंगोटी  बाँध,  ठंड  में   घूम   रहे  हैं।
भूख, भोग, आतंक, देखिए सब विचार के।
एक विषय पर  मापदंड क्यों, दो प्रकार के।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
13.01.2018
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485. हम अब्बल हैं तुम दोयम हो (मुक्तक)

485. हम अब्बल हैं तुम दोयम हो (मुक्तक)

हम अब्बल हैं, तुम दोयम हो, हम कहते  वो  ही राष्ट्रवाद।
हमरे,  कुकर्म, आडंबर  पर, काहे  को  इतना  है  विवाद।
हम  ऊँच-नीच, हम  छुआछूत, हम जातिवाद के परिचायक।
हम  इसी  सोच  के  संरक्षक,  ये  ही   तो  हमरा  बीज-खाद।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
13.01.2018
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Saturday, January 13, 2018

484. नमन तथागत आपको (कुण्डलिया)

484. नमन तथागत आपको (कुण्डलिया)

नमन  तथागत  आपको, ज्ञानमयी  हे  बुद्ध।
अंतर को पावन करो, मन को  कर दो शुद्ध।
मन को  कर दो शुद्ध,  दूर  दुर्बलता  करिये।
ज्ञान चक्षु दो खोल, हृदय से  तम को हरिये।
तन-मन  से हे नाथ, हम सभी हैं शरणागत।
विनत भाव से  करें आपको नमन तथागत।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.01.2018
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Sunday, January 07, 2018

483. ज्यों ही धन-दौलत घर आई (मुक्तक)

483. ज्यों ही धन-दौलत घर आई (मुक्तक)

ज्यों  ही  धन-दौलत  घर  आई,  आकर  दर  पर सरकार गिरे।
बटुए की' खनक सुन-सुनकर के, हर दिन घर आ दो-चार गिरे।
मुखिया-सुखिया,  हाकिम-साकिम, सब  आकर  हमरे द्वार गिरे।
हा'य   ऐसी   जेब   फटी   हमरी,  सिक्कों   सँग रिस्तेदार गिरे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.01.2018
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482. आज चुनौती बन गया (कुण्डलिया)

482. आज चुनौती बन गया (कुण्डलिया)

आज चुनौती  बन  गया, बाबों  का  व्यभिचार।
शिव - कान्हा  के  नाम   पर,  करते  यौनाचार।
करते   यौनाचार,  काम   बस   इतना   इनका।
खूब रहे फल फूल, नाम ले किन का, किन का।
नारिन  सँग  दुष्कर्म,  अपहरण  और  फिरौती।
इनका ये  व्यभिचार,  बन  गया आज  चुनौती।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.01.2018
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Saturday, January 06, 2018

481. चार लठ्ठ का चौधरी (कुण्डलिया)

481. चार लठ्ठ का चौधरी (कुण्डलिया)

चार लठ्ठ  का चौधरी, पाँच लठ्ठ  का  पंच।
जाके घर छह  लठ्ठ  हैं, बाकूँ अंच  न पंच।
बाकूँ अंच न पंच, करें सब हाँ जी, हाँ जी।
समरथ ने जो कहा, वही कानून  बना जी।
कौन विरोधी बने, काह कूँ किसी भट्ट का।
करते सब  सम्मान,  हमेशा चार  लठ्ठ का।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.01.2018
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481. चार लठ्ठ का चौधरी (कुण्डलिया)

चार  लठ्ठ   का  चौधरी, पाँच  लठ्ठ  का  पंच।
जिसके घर  छह लठ्ठ  हैं, बाकूँ  अंच  न पंच।
बाकूँ अंच  न  पंच, करें  सब  हाँ जी, हाँ जी।
समरथ  ने  जो  कहा, वही  कानून  बना जी।
कौन विरोधी बना, आज तक किसी भट्ट का।
करते  सब   सम्मान,  हमेशा  चार  लठ्ठ  का।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.01.2018
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बाकूँ-उसके लिए
अंच न पंच- पंच और पंचायत कुछ नहीं
भट्ट- ताकतबर व्यक्ति

480. वंसमोर का शोर है (कुण्डलिया)

480. वंसमोर का शोर है (कुण्डलिया)

वंसमोर का  शोर है, चहुँदिश जय-जयकार।
इसने  कवियों को  दिया, एक  नया आधार।
एक नया आधार,  मिला  है  प्रतिभाओं को।
महानगर अरु नगर, राज्य के सब  गाँवों को।
डीडी पर  है  हुआ, आगमन  नए  भोर  का।
जिधर  देखिए  उधर,  शोर  है  वंसमोर  का।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.01.2018
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