457.अलि का यही स्वभाव है (कुण्डलिया)
अलि का यही स्वभाव है, कलियों को ललचाय।
यौवन का रसपान कर, निर्मोही उड़ जाय।
निर्मोही उड़ जाय, पुष्प को शुष्क छोड़कर।
गीत, मीत, रस, प्रीत, सभी संबंध तोड़कर।
यह है धोखेबाज, संभलकर रहना कलिका।
खाय-पिये उड़ जाय, आचरण यह है अलि का।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.12.2017
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