Monday, December 25, 2017

कुण्डलिया-1- दिनाँक 24.12.2017 तक।

कुछ कुण्डलिया

सरस्वती वंदना

माता  जो  आता  मुझे,   वो  तो   है  तृणभार।
जो  मुझको  आता   नहीं,  वो  पर्वत  उनहार।
वो  पर्वत  उनहार,  पुत्र  पर   किरपा   करिये।
आलोकित पथ करो, मात अब तम को हरिये।
सच को सच लिख सकूँ, रहे सच  से ही नाता।
इतनी  किरपा करो, आज इस सुत  पर माता।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

धीरे  से  बज  बावली, मत  कर  इतना  शोर।
पहले   ही   बदनाम   हूँ,  चर्चा   है  चहुँओर।
चर्चा  है  चहुँओर,  मान  मम   बात  निगोड़ी।
लाज शर्म  को छोड़, अरे  मत बने  छिछोड़ी।
विरहा  की  ये  आग, नहीं अब  जाय सही रे।
बजना  ही   है  सौत,  अरे   बज  धीरे - धीरे।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

मौसम है  मधुमास  का, नगिचाया  है  फ़ाग।
अंग-अंग  में  मस्तियाँ,  जाग  रहा  अनुराग।
जाग  रहा  अनुराग, शिथिल तन  हैं गदराये।
नभ-जल-थल  बेचैन, आम  जामुन  बौराये।
बालक  हुए  जवान, बढ़ा  बूढ़ों  में  दमखम।
सब पर चढ़ा खुमार, फ़ाग का आया मौसम।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

गोरी, गोरी  देह  का,  बैठ   करे   श्रृंगार।
कंचन झुमका हाथ ले, रही कान में डार।
रही कान में डार, सजे अधरों पर लाली।
काले-काले केश, सुरमयी  आँखें काली।
दिखे फूल सी जवां, लगे  है कोरी-कोरी।
नजर  पड़े  कुम्लाह,  देह  ये  गोरो-गोरी।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

दर्पण सम्मुख हो खड़ी, तन को  रही  निहार।
नथनी,  झुमका, चूड़ियाँ,  पहन गले  में हार।
पहन गले में हार,   सजा  बालों   में   गजरा।
बिंदी  सोहे  भाल,  और   आँखों  में  कजरा।
रति सा रूप  निखार, हिये में  भाव समर्पण।
कैसे रहा  सँभाल, देख  ये,  खुद  को  दर्पण।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया छंद

राधा-मुख पर कृष्ण ने,जिस क्षण मला गुलाल।
गौरवर्ण   की   राधिका,  हुई   लाज   से  लाल।
हुई  लाज   से  लाल,   लगे   पत्थर  की  मूरत।
किंकर्तव्यविमूढ़,  लखे   कान्हा     की    सूरत।
आधे तन  में  श्याम, लगे तन  ख़ुद  का  आधा।
ये   कैसा   संबंध,    सोचती    मन    में   राधा।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया छंद

गीता सारे  विश्व  को,  कर्मयोग  सिखलाय।
किंकर्तव्यविमूढ़  में,  हमें   राह   दिखलाय।
हमें राह  दिखलाय, कहे  सँग रहो  धर्म  के।
फल की चिंता छोड़, भाग्य है जुड़ा कर्म से।
जो जन्मे सो मरे, कौन  सदियों  तक जीता।
जन्म-मरण  का मर्म, हमें  समझाती  गीता।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

ईश्वर  से   है   कामना,  रहो   हमेशा   साथ।
सुख-दुख में छूटे नहीं, तुम  दोनों  का  हाथ।
तुम दोनों  का  हाथ,  यही  आशीष  हमारा।
मधुरम् और  प्रगाढ़,  रहे   सम्बन्ध  तुम्हारा।
तन-मन रहे निरोग, भरा हो खुशिओं से घर।
मनोकामना   पूर्ण,  करे   दोनों   की   ईश्वर।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

चोटी  होकर  बावली,  रही  नशे  में  झूम।
कभी वक्ष, कंधे कभी, कभी पीठ ले चूम।
कभी पीठ ले चूम, खा रहीे यह हिचकोले।
इतराती फिर रही, मगन हो इत-उत डोले।
देख  सलोना रूप, नियत  दीखे  है खोटी।
छू - छू  गोरी  अंग,  आज   बौराई   चोटी।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

201. कुण्डलिया

कंगना   पायल   से   कहे,  काहे   होत  अधीर।
हम  दोनों   की  एक  गति,  एक   हमारी   पीर।
एक    हमारी   पीर,   सजन   आ    इसे   हरेंगे।
लखकर,   छूकर,  चूम,   नया   उत्साह   भरेंगे।
वो दिन अब नहि दूर, मिलेंगे जिस  दिन सजना।
मन  मत  करे  मलीन, कहे  पायल  से कंगना।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

रूप   तुम्हारा   देखकर,   होता    यही   प्रतीत।
तुम्हीं छंद, कविता तुम्हीं, तुम्हीं गजल औ गीत।
तुम्हीं  गजल  औ  गीत,  तुम्हीं   दोहा,  चौपाई।
तुम   ही  लगो  कवित्त,  तुम्हीं दिगपाल, रुबाई।
तुम्हीं   कुकुभ,   ताटंक,  लावणी, रोला  प्यारा।
कविगण  हैं   स्तब्द्ध,   देख   ये   रूप  तुम्हारा।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

पायल मद में  चूर  है, अब  नहीं  सुनती  बात।
जब  चाहे तब  बज उठे, दिन  देखे  नहिं  रात।
दिन  देखे  नहिं  रात,  प्रेम  धुन  रह-रह  गाये।
छेड़  विरह  की  तान, जिया  में  आग  लगाये।
निश-दिन आठों पहर, हिया को करती घायल।
लोक-लाज  औ  शर्म,   छोड़   बौराई   पायल।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

208. कुण्डलिया

दुनिया भर  के  रूप  से,  ईश्वर  दीना लाद।
हुश्न तुम्हारा सृष्टि को, कर  नहिं  दे  बर्बाद।
कर  नहिं  दे बर्बाद,  रूप तुम्हरा मतवाला।
उन्नत  उभरा वक्ष, गाल पर  तिल ये काला।
नथनी, कुंडल, हार, चूड़ियाँ औ  पैजनिया।
इतना सब  इक साथ, देख  बौराई  दुनिया।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

शौक  तुम्हारे  में  प्रिये, खाली  रहती  जेब।
हर पल  मुझे सतात है,  यही  तुम्हारा  ऐब।
यही  तुम्हारा   ऐब,  हमें   पड़ता  है  भारी।
क्रय को करिए  बंद, आ  गई अब लाचारी।
लिखा भाग  का लेख, नहीं  टरता  है  टारे।
कर   देंगे  कंगाल,  हाय  ये  शौक  तुम्हारे।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

पत्नी का जब साथ हो, हर दिन होता खास।
प्रेम दिवस हर रोज  है, हर  मौसम मधुमास।
हर  मौसम  मधुमास,  खुशी हर इससे आये।
पहले पति  को  देय, बाद  में  खुद  ये खाये।
कभी शहद सी लगे, कभी  है तीखी  चटनी।
सखा, सचिव औ मात, वैद्य सम होती पत्नी।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

सुन्दर मुखड़ा देखकर, किसको रहता होश।
विश्व  मोहिनी  रूप यह,  कर  देता मदहोश।
कर  देता  मदहोश,  हुश्न   ये  चढ़ता  यौवन।
मद्य भरे  ये  नैन,  और  ये  तिरछी  चितवन।
देख  मनोहर  रूप, चाँद  है  उखड़ा-उखड़ा।
छीन रहा सुख चैन, हाय  ये  सुन्दर  मुखड़ा।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

चंचल अँखियाँ देखकर, किसको रहता होश।
तिरछी चितवन चित्त हर, कर  देती खामोश।
कर  देती  खामोश,  जिया  में  धँसती  जाये।
जिसके उर घुस जाय, उसे फिर कौन बचाये।
देख   बावला  रूप,  हँसे  सब तेरी  सखियाँ।
छीन रहीं  सुख चैन, हाय ये चंचल  अँखियाँ।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

सजनी के मुख पर गिरे, घूँघट  से  छन  धूप।
दृष्टि  हमारी  जब  पड़ी,  खिला दोगुना रूप।
खिला दोगुना  रूप,  चौगुनी  निखरी आभा।
आठ गुना लावण्य, दस  गुना  यौवन  जागा।
बीस  गुना  उत्साह, सौ  गुनी  जागी  अगनी।
ले  लेगा  मम  प्राण,  रूप   तेरा  ये  सजनी।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

आली नख-शिख तक सजा, श्यामल केश सँभार।
नथनी,   झुमका,  चूड़ियाँ,  डाल   गले   में   हार।
डाल   गले   में   हार,  बाँध   गजरा  औ   पायल।
कजरे  को  दे  धार, पिया   को   कर   दे  घायल।
छिड़क  देह  पर   इत्र,  लगा  होंठों   पर   लाली।
रति  सा  मुझे   निखार,  आज  ओ  मेरी  आली।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

पायल! वर्षों बाद अब, मिला सजन का साथ।
चुप  हो   जा   ओ  बावली,  जोड़ूँ  तेरे   हाथ।
जोड़ूँ   तेरे   हाथ,  अरे   क्यों  शोर   करत  है।
लोक लाज की सोच, धीर  क्यों नाहिं धरत है।
पर  पायल   मदमस्त,  पैर  कर  दीने  घायल।
सजन  छुएंगे  आज, सोचकर  पगली  पायल।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

दिनाँक 25.08.2016 को अख़बारों में उड़ीसा राज्य की छपी एक घटना पर एक पुरानी रचना।

कुण्डलिया छंद

माँझी खुद ही ढो रहा, निज पत्नी  की लाश।
मानहुँ  शिव निज भामिनी, ले जाएं  कैलाश।
ले   जाएं   कैलाश,  सो   रहीं   हैं   सरकारें।
मुर्दों का  हक़  खाय,  एक नहिं  बार डकारें।
सिंहासन  ने  करी,  गरीबी  कब  है   साँझी।
दुर्दिन को  हैं  ढोत,  देश  में   लाखों  माँझी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.08.2016
*****
ढोत - ढो रहे
साँझी - हिस्सेदारी

कुण्डलिया

कुत्तों  ने  बैठक  करी,  हो अपना  भी  राज।
राजनीत  में भी बढ़े, अपना  कुकुर  समाज।
अपना कुकुर समाज, चचा, ताऊ औ भ्राता।
दे-दे  सबको टिकट,  बनाओ, भाग्यविधाता।
लीनी   जनता   घेर,   गँवार   कुकरमुत्तों  ने।
हाल  किया बेहाल,  देश  का  इन  कुत्तों  ने।

रणवीर सिंह "अनुपम"
*****

कुण्डलिया

जिसकी  खाली  जेब  है, वह  जीवन  बेकार।
टुकुर-टुकुर  हर  चीज को,  देखे  बीच बजार।
देखे  बीच बजार,   मारकर  मन   रह  जाता।
कोसत, खीझत और, भाग्य पर है  झल्लाता।
'अनुपम'   बनो  समर्थ,  बुरी   होती  कंगाली।
उसको  पूछे कौन, जेब  हो  जिसकी  खाली।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

कुण्डलिया

खाली बातों से नहीं, हो सकता  कल्याण।
कब तक खाली पेट में,  फूँकेंगी  ये  प्राण।
फूँकेंगी  ये   प्राण,  जोश   आएगा   कैसे।
राष्टवाद,  जयगान,   कौन  गायेगा   कैसे।
धर्मों की जयकार, और नहिं  होने  वाली।
रोटी  है भगवान, उदर जिनका  है खाली।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

कुण्डलिया

रोटी  है  मसला  यहाँ, इसकी  करिये  बात।
मंदिर-मस्जिद  में  हमें, काहे  को उलझात।
काहे  को उलझात, पेट नहिं  इससे  भरता।
उदर भरा हो तभी, भजन पूजन भी करता।
भूख  समस्या  बड़ी,  शेष  बातें   हैं  छोटी।
भूखों  का  भगवान,  सिर्फ  होती  है  रोटी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

कुण्डलिया

वादे,  वादे   होत   हैं,  आम   करे  या  खास।
वादों   पर   मत   जाइये,  वादे   हैं  बकवास।
वादे हैं  बकवास,  कौन  टिकता  है  इन  पर।
सरकारें  बन  रहीं, सिर्फ  वादों  के  बल  पर।
भूखे  मरें  किसान, कर्ज  का  कफ्फन  लादे।
सरकारों   से   मिलें,   सिर्फ   वादे   ही  वादे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****
कुण्डलिया

बाकी   चीजें    छोड़िये,   रोटी   कोसों    दूर।
फल-सब्जी  घी  दूध  से,  रिश्ता  नहीं  हुजूर।
रिश्ता   नहीं   हुजूर,   हर  तरफ  है  मँहगाई।
"अच्छे दिन का स्वप्न" स्वप्न  निकला  है भाई।
खाँस-खाँस मर गए, दवा बिन काका-काकी।
यह  भी  लेउ   उतार,  खाल  ही   रह  बाकी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

कुण्डलिया

ये  बिस्तर  की  जिंदगी, नहिं उमंग नहिं  चाव।
नस्तर सी निशदिन चुभे, करती  दिल पर घाव।
करती  दिल  पर  घाव,  शराफत  नोंचे  खाये।
गिरें  कीच  में  आय,  लाज  इसको नहिं आये।
कभी  लसलसी लगे,  कभी  लागे  प्रस्तर सी।
जिस्मों  का  बाजार,  जिंदगी  ये  बिस्तर  की।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

कुण्डलिया

महलों  ने   हरदम   करी,   झोपड़ियों  से   घाट।
ला  छोड़ा  फुटपाथ  पर,  कर   दिया बारहबाट।
कर  दिया  बारहबाट,   तरक्की    में   ये   रोड़ा।
खाए  कफ़न, पहाड़,  खदान  नहीं कुछ  छोड़ा।
सरकारी   लुटपाट,   करी   कब    खपरैलों   ने।
हरदम    लूटा     देश,   गगनचुंबी     महलों   ने।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

कुण्डलिया

"अच्छे दिन" की आज तक, देख रहे  हैं बाट।
वो  ही  टूटी  झोपड़ी,   वो   ही   टूटी   खाट।
वो  ही  टूटी  खाट,  भूख   वो   ही   बीमारी।
चहुँदिश  लूटघसोट, पुलिस  वो  ही पटवारी।
रोज  करें  गुणगान, हवाई  वादे  गिन - गिन।
मँहगाई  की  मार, खा  रहे  हैं "अच्छे  दिन"।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

कुण्डलिया

मंचों पर चिल्ला रहे, मिस्टर आमिर खान।
उनको भी  लगने लगा, संकट में  हैं  प्रान।
संकट में हैं प्रान, डरें  खबरों को पढ़ सुन।
भारत नहीं सहिष्षुण, रटें मंचों पर ये धुन।
कायर ओ  कृतघ्न,  शर्म  कर  प्रपंचों पर।
झूठे गाल बजात,  फिरे  क्यों तू  मंचों पर।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

कुण्डलिया

धरती   पानी   के   बिना,  सूख    हुई   बेहाल।
त्राहि त्राहि सब कर रहे, चहुँदिश पड़ा अकाल।
चहुँदिश   पड़ा  अकाल,  अरे  आ   वर्षा  रानी।
प्यासे  जो  मर   रहे,   इन्हें   दे   तू   जिंदगानी।
देख  तुझे   हुंकार   जिंदगी   फिर   से   भरती।
पा    तेरा   सानिध्य,   लहलहा  उठती   धरती।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

बन्दर पकड़न हेतु जब, आया  इक फरमान।
गधी,  गधे  से  यूँ  कहे, भाग चलो  श्रीमान।
भाग  चलो श्रीमान, सुरक्षित  गलि-कूँची  में।
दर्ज न  कर  दें  नाम,  कहीं  बन्दर  सूची  में।
उम्र   गुजर   जायेगी,  सारी जेल  के अन्दर।
साबित नहिं कर सकें, गधे  हैं या हम बन्दर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

कुण्डलिया

अति भ्रमण  एक  व्याधि है, इससे रहिये दूर।
यायावर  का  रोग  ये,   अच्छा   नहीं   हुज़ूर।
अच्छा  नहीं   हुज़ूर,  वचन - कर्मों  में  अंतर।
यह   दोहरा  किरदार,   चलेगा  नहीं  निरंतर।
बहुत  हो  चुका  नाथ,  छोड़िये  ये आमंत्रण।
कुछ दिन घर में रहो, बंद  करिये  यह भ्रमण।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

कुण्डलिया

अति का भला न घूमना, अति  से रहिये  दूर।
यायावर  का   रोग   ये,  अच्छा  नहीं   हुज़ूर।
अच्छा  नहीं   हुज़ूर, वचन - कर्मों  में  अंतर।
यह   दोहरा  किरदार,  चलेगा  नहीं  निरंतर।
भोग रहे परिणाम, आज हम भोली मति का।
झूठ, ढोंग, पाखंड, अंत  होगा इस अति का।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

कुण्डलिया छंद

मेंहदी  काजल   से   कहे,  काहे    होत  अधीर।
तेरी   मेरी    एक   गति,    एक    हमारी    पीर।
एक   हमारी   पीर,   सजन    आ    इसे   हरेंगे।
लखकर,  छूकर,  चूम,   दर्द   सब   दूर   करेंगे।
यह सुन  माहवर  कहे,  हो  रही   काहे  पागल।
मन  मत  करो  मलीन,  अरे ओ मेंहदी काजल।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

गोरी  पर्दा  को   हटा,  अम्बर   रही   निहार।
लालवर्ण की  कंचुकी,  लँहगा,  चुनरी  धार।
लँहगा, चुनरी  धार,   लगे  ज्यों  कोई  मूरत।
भूल  गई  संसार, जगत  की   नहीं जरूरत।
शांतचित्त, दिन मध्य,  ढूँढ रहि चाँद चकोरी।
मन  में  ले  विश्वास,  देख  रहि  रस्ता  गोरी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

पत्नी जी   हैं   माँगती,  मुझसे   सदा   हिसाब।
कितना  वेतन  मिल  रहा,  दीजे  सही  जवाब।
दीजे   सही    जवाब,   टालते    काहे   हरदम।
सच-सच हमें बताउ, आपकी तनखा क्यों कम।
बात,  बात  पर  कहें,  नहीं   तुमसे  पटनी जी।
जब  से  घर  में  घुसीं, यही  कहतीं  पत्नी जी।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
*****

समय बड़ा है सृष्टि  में, सब कुछ  इसके  हाथ।
बुद्धि होत विपरीत तब, समय न हो जब साथ।
समय न  हो जब साथ, हिरन  सोने  का  लागे।
लुटी  गोपियाँ   हाय,    धनुर्धर   अर्जुन   आगे।
जग से  सब  लड़ लेय, समय से कौन लड़ा है।
परमेश्वर   के  बाद,  सृष्टि   में   समय  बड़ा  है।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

बंदर   पाकर   उस्तरा,  काटेगें   निज   नाक।
झूठ  कहावत  ये  हुयी,   बन्दर  हैं   चालाक।
बन्दर   हैं   चालाक,   काटते   हैं  अब   जेबें।
दिखा  उस्तरा   हमें,   हमारा   सब   ले  लेबें।
होकर के  हुशियार,  बन  गये आज  कलंदर।
कैसे    रहे   नचाय,   हमें  ये   शातिर   बंदर?

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

सौ लोगों  के  बीच  में, घुसकर  दल्ले  चार।
भूख-प्यास की बात पर, सरकारी जयकार।
सरकारी   जयकार,    देशभक्ती   के   नारे।
राष्ट्रभक्ति   सिखलाँय,   हमें   गुंडे - हत्यारे।
चिल्ला - चिल्ला कहें,  वैद्य ये  सब रोगों के।
जब से घुसे हैं  चार,  बीच  में  सौ लोगों के।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
02.12.2016

सबसे   पहले   भैंस  की,  घंटी   खोलें   चोर।
एक  उसे  ले   पूर्व   में,   करता   जाये   शोर।
करता   जाये   शोर,  भैंस   पश्चिम  में  जाये।
खोजबीन   के  बाद,   हाथ  बस  घंटी  आये।
आज यही हो रहा, बुद्धि को कसकर गह  ले।
घंटी   नाहीं   भैंस,    ढूँढ़   तू   सबसे   पहले।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.12.2016
*****

कुण्डलिया छंद

सौ-सौ  गज  की  तान मत, ओ रे कृपानिधान।
शब्दों पर औ  कर्म  पर,  कुछ  तो दीजे ध्यान।
कुछ तो दीजे ध्यान, फर्क अब ज्यादा दिखता।
बहुत दिनों तक झूठ, हाट में  है  कब  बिकता।
नोटबंद  की बात,  बात  मत  कर  कागज की।
बची साख ले बचा, तान  मत  सौ-सौ गज की।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.12.2016
*****

कुण्डलिया

कभी  न  देना  उस्तरा,  नौसिखिया  के  हाथ।
देकर  के  मत  पूछना,  क्या हो किसके साथ।
क्या हो किसके साथ, कान काटे यह किसके।
प्रभु  ही  उसे  बचाय,  हाथ जो  आये  इसके।
नाकाबिल  के   संग,  काम   बुद्धी   से  लेना।
नौसिखिया   के  हाथ,  उस्तरा  कभी  न देना।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.12.2016
*****

कुण्डलिया

एक   मदारी   संग  में,   दिखें   जमूरे  पाँच।
हाँ जी, हाँ जी  कर रहे,  करें  झूठ को साँच।
करें झूठ  को साँच, सत्य का कर जयकारा।
उधर भूख से  तड़फ, सत्य मर रहा बिचारा।
जय-जय  दीनानाथ, उम्र  हो  जाय  हजारी।
सबको   रहा  नचाय,  देखिये   एक  मदारी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.12.2016
*****

कुण्डलिया छंद

हक़ में सच के फैसला, होना हो गया बंद।
मुंशिफ  हक़लाने  लगें,  देख  रुपैया  चंद।
देख  रुपैया  चंद,  न्याय का आसन डोले।
सत्यमेव  जयते  यहाँ  पर  अब  को बोले।
स्वार्थ  साधने  हेतु  बैठकर  ये  बैठक  में।
करें  फैसला आज, पंच  झूठों के  हक़ में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.12.2016
*****

कुण्डलिया

नख़रे  मत   दिखला  अरे, ओ  नखरीली  नार।
हर-इक अदा  कटार सी, होय  जिगर के  पार।
होय  जिगर  के  पार,  तीर  सी  तेरी  चितवन।
ऊपर  से  मुस्कान,  करे  है  घायल   तन-मन।
हाँ  करके  फिरजाय,  बात  ये  दिल में अखरे।
ओ  नखरीली   नार,  दिखा  मत   ऐसे  नख़रे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.12.2016
*****

काहे  का  यौवन  अरे,  काहे  का   रँग - रूप।
माटी  में  इक दिन  मिलें, चारण हों  या  भूप।
चारण हों  या भूप,  काल  सबको  है भखता।
सद्कर्मों के बिना, याद जग  किसको रखता।
राजपाट, धन-धान्य, व्यर्थ पद, वैभव, गौधन।
बिना  लोक  कल्याण, अरे  काहे  का  यौवन।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.12.2016
*****

कुण्डलिया छंद

अच्छे   हैं  भाषण  सभी,  अच्छे  हैं  जज्बात।
पर  अंदर  से  खोखली,  दिखती  है  हर बात।
दिखती है हर बात, विरोधी जन-गण-मन की।
समझ  न  पाये  नाथ, पीर तुम हमरे  मन  की।
बच्चे  भूखे   मरें,   नहीं   हैं   तन  पर   कच्छे।
साहब  अच्छे  आप, आप  के  भाषण  अच्छे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.12.2016
*****

कुण्डलिया

हक़ हित भोला मोर जब, पहुँचा वक के द्वार।
हाथ जोड़  कहने लगा,  न्याय  करो  सरकार।
न्याय  करो  सरकार,  मोरनी  है  ये  किसकी।
उसको  सौंपी जाय, भामिनी  है  ये  जिसकी।
हंस  छोड़ जब मोर, भरोसा  कीन्हा  वक  में।
क्यों नहिं  निर्णय होय  एक उल्लू  के  हक़ में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.01.2017
*****

कुण्डलिया

भड़ुआई   करते  फिरें,  भड़ुए  नेता  आज।
गरिमायें  धूमिल हुईं, रही  शर्म  नहिं  लाज।
रही शर्म  नहिं  लाज, साख पर  लग्या बट्टा।
प्रतीकों   का  आज,   लगा  होने   हैं  पट्टा।
राजनीत  अब  हाय,  उतर  इस  स्तर आई।
बात-बात  पर  आज,  करें  नेता  भड़ुआई।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.01.2017
*****

कुण्डलिया

सीमा  के  भीतर   रहो,  मत   करिये  उत्पात।
बात-बात पर  मत करो, सिर्फ  खोखली बात।
सिर्फ खोखली बात, भक्ति मत हमें सिखाओ।
कपट, झूठ, पाखंड,  सनसनी  मत  फैलाओ।
भला देश का  कभी नहीं, कर  सके  फटीचर।
बहुत  हो  चुका  यार,  रहो  सीमा  के  भीतर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.01.2017
*****

कुण्डलिया

सीमा  भीतर  ही  रहो, ओ भारत  के नाथ।
जब  से  आये  आप  हैं, जनता  पीटे माथ।
जनता पीटे  माथ, सनसनी  मत  फैलाओ।
भूख-प्यास को छोड़, देशभक्ती मत गाओ।
उतर मुलम्मा गया, निकल आयी  है पीतर।
बची-खुची लो बचा, रहो अब सीमा भीतर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.01.2017
*****

कुण्डलिया

चरखा पर भी  आप ने, लगा  दिया है दाँव।
इस  नौटंकी  से  प्रभू,  बदल  सकेंगे  गाँव?
बदल सकेंगे  गाँव? मिलेगी क्या रुजगारी?
भूख, प्यास का रोग,  ख़त्म होगी लाचारी।
नाथ सनसनी  हेतु, पोत ली काहे  करखा?
सूटबूट को पहन चलाया कब-कब चरखा?

रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.01.2017
*****

कुण्डलिया

परमेश्वर   ने    है   गढ़ा,   ऐसा  सुन्दर    गात।
देख  इसे   सँभला  रहे,  किसकी  ये औकात।
किसकी  ये  औकात, रख सके काबू में  दिल।
जप, तप, व्रत दे छोड़, जिसे भी तू जाये मिल।
नभ-जल-थल बेचैन, किया  क्या  ये  ईश्वर ने।
ऐसा   सुन्दर   गात,  गढ़ी   क्यों   परमेश्वर  ने।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
20.01.2017
*****

कुण्डलिया

कर्तव्यों  की  बात अब, करता कौन  हुजूर।
धर्म-जाति  की बात कर, मंचों  पर  मशहूर।
मंचों   पर    मशहूर,   हवाई    करते   वादे।
बात-बात पर  झूठ, साफ नहिं दिखें  इरादे।
काट  रहे   हैं  आज,  गर्दनें  इकलव्यों  की।
कुर्सी  पाकर  बात,  करे  को  कर्तव्यों  की।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
20.01.2017
*****

कुण्डलिया

मर्यादा  सब  ढह  गयी, निष्ठा  बनी  रखेल।
देशभक्ति के  नाम पर,  देश  बना  है  खेल।
देश  बना    है   खेल,  लगाते   नेता   सट्टा।
छीछालेदर   करें,   साख  पर   लग्या  बट्टा।
ओछे दीखें  कर्म, कोइ  कम  कोई  ज्यादा।
नेताओं  ने  आज , त्याग  दी  सब  मर्यादा।

रणवीर सिंह ',अनुपम'
22.01.2017
*****

कुण्डलिया

कहने से भी  ना करें, जो  उनका  गुणगान।
उनको  है  फरमान  यह,  छोड़ें   हिंदुस्तान।
छोड़ें  हिंदुस्तान,  शख्स  वे   सब  आतंकी।
देशभक्ति  की  नहीं,  करें  जो-जो  नौटंकी।
हवा  हवाई  किले,  बचे  हैं  कब  ढहने  से।
कलाबाजियाँ छोड़, मान जा अब कहने से।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
22.01.2017
*****

एक विरहन का, एक कामी पुरुष के प्रणय निवेदन पर दिया गया जवाब, कुण्डलिया छंद में।

कुण्डलिया

अपने मन को कस जरा, सीख अरे कुछ ढंग।
शोभे  कभी  गुलाब भी,  कुकुरमुतों  के  संग।
कुकुरमुतों के संग, कमलिनी कब है खिलती।
अरे स्यार  को कभी,  सिंहनी भी  है  मिलती।
चल  हट  भाग  गँवार,  देख मत  ऐसे  सपने।
लार  टपकती  पोंछ,  और  घर  जा तू अपने।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
23.01.2017
*****

कुण्डलिया

सीखो समय के साथ तुम, जीवन का हर ढंग।
दुष्कर  भी  आसान हो,  समय  देय  जो संग।
समय  देय  जो   संग,  लाश  भी  पार  उतारे।
समय  होय   विपरीत,  पार्थ  भीलों   से  हारे।
समय  बड़ा  बलवान, समय  से डरना सीखो।
जीवन में हर काम,  समय पर  करना  सीखो।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
23.01.2017
*****

कुण्डलिया

ऐसे तन-मन मत  जरा, लिखो  करारे बोल।
पाती  के  हर  आँख में,  धरो करेजा खोल।
धरो करेजा खोल, लिखो जो  जी में  आये।
दिन में पवन जराय, रात को  शीत  सताये।
विरह डसे  दिन-रात, शशी  को  राहू  जैसे।
जैसे जल बिन मीन,  जी रही तुम बिन ऐसे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.01.2017
*****
आँख- अक्षर

कुण्डलिया

सौ से  ज्यादा  चढ़  गए,  नोटबंद  की  भेंट।
काम करोड़ों का छिना,  जनता  दीन्हीं  मेंट।
जनता  दीन्हीं  मेंट, हाथ  में  था  वो  छीना।
चौपट सब रुजगार, कर दिया दुष्कर जीना।
अच्छे दिन का स्वप्न, रह गया  बनकर वादा।
फिक्र न  उनकी करी, मरे जो सौ से ज्यादा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.01.2017
*****

कुण्डलिया

घटिआई  की  आपने,  काट  लिए   हैं   हाथ।
दीनों   को  डाला  मुड़ल,  वा   रे   दीनानाथ।
वा   रे   दीनानाथ,   त्याग   दी   सब  मर्यादा।
रोज  शगूफा  छोड़,   करो   वादे   पर  वादा।
मितरो-मितरो कहत, लाज तुमको  नहिं आई।
हमसे  पाकर   वोट,  करी   हमसे   घटिआई।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.01.2017
*****
कुण्डलिया

लाल लगाकर  बत्तियाँ,  रोज  कर  रहे  तंग।
कभी दिखायें  रौब को,  कभी  करें गुड़दंग।
कभी   करें   गुड़दंग   कभी    ये   गुंडागर्दी।
सिर्फ दिखाते अकड़  दिखाते  नहिं हमदर्दी।
मारपीट,  लुटपाट   करें   भोंपू   बजवाकर।
खुद को समझें खुदा बत्तियाँ लाल लगाकर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.02.2017
*****

कुण्डलिया

आशा है अति बलवती, इसको रखिये पास।
आगे  बढ़ते  जाइये,   लिए  आस - विश्वास।
लिए आस-विश्वास, कर्म  निज  करते जायें।
करें उन्हें  स्वीकार, मुश्किलें  जो  भी  आयें।
दुविधा को दो त्याग, त्याग दो सभी निराशा।
जीवन  है अनमोल,  रखो आशा  ही आशा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.02.2017
*****

कुण्डलिया

जीवन के  इस  खेल  में,  नहीं छोड़ना आस।
सौ  हारों  के  बाद  भी,  खोना  मत  विश्वास।
खोना मत विश्वास, लक्ष्य की ओर चला चल।
हँसकर  कर ले पान, मिले जो  तुझे हलाहल।
होना नहीं  निराश, त्याग  सब  संशय मन के।
धूप-छाँव, बरसात,  सभी  साथी  जीवन  के।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.02.2017
*****

कुण्डलिया

मंचों  पर   चिल्ला  रहे,  देंगे   दशा  सुधार।
गिनवाते  उपलब्धियां, बनवा  दो  सरकार।
बनवा  दो  सरकार,  कष्ट  सारे   हर   लेंगे।
धन, दौलत, ऐश्वर्य,  सभी से  घर भर  देंगें।
नाथ  नहीं   विश्वास,  तुम्हारे   प्रपंचों   पर।
कोरी यह उपलब्धि, बखानों मत मंचों पर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
16.02.2017
*****

कुण्डलिया

अपनी-अपनी  जीत का, सभी  अलापें  राग।
गिना - गिना  उपलब्धियां,  छुपा रहे  हैं दाग।
छुपा  रहे   हैं  दाग,  लड़  रहे  कुर्सी  खातिर।
करें  दोगली  बात,  चाल   इनकी  है  शातिर।
मन संशय से घिरा, लाज अबकी नहिं बचनी।
फिर भी  बातें  करें, जीत  की अपनी-अपनी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
18.02.2017
*****

कुण्डलिया छंद

गोरी  नीर  उड़ेलकर,  भिगो  रही  निज गात।
नीर  दूधिया  देह  पर,   रुकने  को  ललचात।
रुकने को ललचात, भाग्य से नहिं  लड़ पाये।
खीजत औ खिसियात, लुढ़कता  नीचे जाये।
लूटत  चैन   करार,  हाय   है  कितनी  भोरी।
जल  को  रही  जराय,  देह  जा   गोरी-गोरी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
25.02.2017
*****

कुण्डलिया छंद

भौजी भजतीं  फिर  रहीं, भ्रात नशे  में चंग।
दोनों  सिगरे   घेर   में,  करत  फिरें  हुड़दंग।
करत फिरें हुड़दंग,  हाथ भाभी  नहिं आतीं।
उछल-कूद कर रहीं, भाज वे इत-उत जातीं।
लड़खड़ात फिर  रहे  नशे  में, भैया  फौजी।
कोशिश  करीं हजार, हाथ नहिं आईं भौजी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.03.2017
भजतीं - भागतीं
सिगरे - पूरे
घेर - आँगन, अहाता
भाज - भाग
*****

कुण्डलिया छंद

रड़ुआ नाचत  फिर रहे , चढ़ा  रखी  है भंग।
गलियन  में  घूमत फिरें,  मचा  रहे  हुड़दंग।
मचा   रहे  हुड़दंग,  नशे   में  डगमग  डोलें।
सब के सब मदमस्त, चंग में  बमबम  बोलें।
गोरी  जो मिल जाय, ठूँस मुँह में दें  लड़ुआ।
नीली-पीली  करे बिना, छोड़त  नहिं रड़ुआ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.03.2017
रड़ुआ - जिस पुरुष की शादी की उम्र
हो जाने पर भी शादी न हुई हो
लड़ुआ - लड्डू
*****

कुण्डलिया

भैया  ने  भौजी  तरफ,  कदम   बढ़ाये  चंद।
भौजी भजकर घुस गयीं, करी कुठरिया बंद।
करी  कुठरिया बंद, भ्रात  कहें  बाहर आवौ।
दुइ  बच्चन  की  मात, हो गई  तऊँ  लजावौ।
कढ़ते  ली गुफियाय,  लगावें  रँग  मनमौजी।
रगड़-रगड़कर  लाल, करीं  भैया  ने  भौजी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.03.2017
कुठरिया - कमरा
तऊँ - तब भी
गुफियाय - बाहों में कस ली
*****

कुण्डलिया

भौजी  भैया   से   कहें,   करो   शरारत  बंद।
ऐसे  मलो   गुलाल  मत,  खुलिये   चोलीबंद।
खुलिये   चोलीबंद,  पिया मत  और सताओ।
भैया  बोले  आज,  इस तरह  मत  शरमाओ।
भाभी हँस-हँस कहें, चुप रहो अह मनमौजी।
यह सुन  लीं  गुफियाय, फेरि भैया  ने भौजी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.03.2017
गुफियाय - बाहों में कस ली
फेरि - पुनः
*****

कुण्डलिया

फागुन  का  महिना लगा, हर  कोई  मदमस्त।
भाभी का  रँग-रूप  लख, भैया  जी  हैं पस्त।
भैया  जी   हैं  पस्त,  हाथ  भौजी  नहिं आवैं।
उल्टी सज-धज  सँवर, रोज जी को ललचावैं।
कहतीं  समझूँ  तुम्हें, जानती हूँ  सब अवगुन।
तब से अति  धर  रहे, लगो  है जब से फागुन।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.03.2017
अति - ऊधम
*****

कुण्डलिया

रसिया रस छलकाउ  मत, समझूँ  तुम्हरे  ढंग।
तुम   हो    छूना    चाहते,   मेरा    गोरा  अंग।
मेरा   गोरा    अंग,   रँगन   चाहत   मनमौजी।
जानूँ  जिय  को  हाल,  कहें  भैया  से  भौजी।
समझूँ   मैं  हर  बात,  दूर  रहियो मनबसिया।
व्यर्थ रहे  छलकाय,  कीमती  रस जू  रसिया।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.03.2017
जू - यह
*****

कुण्डलिया

मत  तड़पाओ   इस  तरह,   मेरी   प्राणाधार।
अब तो  अपने  लाज  का,  घूँघट  देउ  उतार।
घूँघट  देउ  उतार,  रूप  यह   जी   भर  देखूँ।
मदिरालय  का  मद्य, आज फिर  पीकर  देखूँ।
लूटा  चैन  करार,  तरस  इस दिल पर खाओ।
होली के  दिन आज, प्रियतमा मत तड़पाओ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.03.2017
*****

कुण्डलिया

दशों  दिशायें  झूमती,  सुना  रहीं   हैं  फाग।
अलि कलियों की देह में, जगा रहा अनुराग।
जगा रहा  अनुराग, पपीहा  पिउ-पिउ बोले।
मादकता उर  लिए, पवन  बहकी  सी डोले।
सेमल, आक, अनार, आम, महुआ  बौरायें।
फागुन का गुणगान, कर रहीं  दशों  दिशायें।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.03.2017
*****

कुण्डलिया

भँवरे  कर-कर  थक गए,  कलियों  से  मनुहार।
पर कलियाँ नहिं कर सकीं, लज्जावश इजहार।
लज्जावश   इजहार,  मचे  अंतर   में  हलचल।
बहुत दिनों तक कौन, पी सका विरह हलाहल।
प्रेमी  जब  हो  द्वार,  प्रेयसी  क्यों   नहिं  सँवरे।
कलियों  के  पट  खुले, हो गए व्याकुल  भँवरे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
13.03.2017
*****

कुण्डलिया

भौजाई ने  भर दई,  गुजियन भीतर भाँग।
भैया  उठकर  भोर  से, लगा  रहे  हैं बाँग।
लगा रहे  हैं  बाँग, भ्रात  खटिया  पर लेटे।
बाबा  ठोंकें  ताल, जांगिया  लाल  समेटे।
चच्चा चाची समझ बुआ की गही कलाई।
सभी भंग में  चंग,  करो  का  जू भौजाई।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.03.2017
का-क्या
जू-यह
*****

कुण्डलिया

जी  भर   कर  देखूँ  उसे, नहीं   कामना  अन्य।
कहाँ  मिले  सौंदर्य  यह,  यौवन  यह  लावण्य।
यौवन   यह  लावण्य,  रूप  अति प्यारा  लागे।
भंग  होय   वैराग्य,   कामना   मन    में   जागे।
जल  तरंग   सी   देह,  करे   आंदोलित  अंतर।
जाग  उठे  उत्साह,  देख  ले  जो भी  जी  भर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
18.03.2017
*****

कुण्डलिया

काठ की' हंडी, है  सुना, चढ़ती  ऐकहिं  बार।
मगर आजकल  हिंद  में, चढ़  रहि  बारम्बार।
चढ़   रहि    बारम्बार,   दायरा   बढ़ता  जाये।
बुद्धिमान  हैरान, समझ में  कुछ  नहिं  आये।
पड़े  बौद्धिक आँच,  देश  की  जब भी  ठंडी।
एक नहीं  दस  बार, चढ़ेगी  काठ  की'  हंडी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
19.03.2017
*****

कुण्डलिया

चोर लफंगे हर जगह, गाँव, शहर या राज्य।
इनकी  तूती  बोलती,  इनका  है  साम्राज्य।
इनका  है  साम्राज्य,  राष्ट के  यह निर्माता।
ये  ही  पालनहार,  यही   हैं  भाग्यविधाता।
राहजनी,    लुटपाट,   करायें   कौमी   दंगे।
खूब  रहे  फल - फूल,  देश  में चोर लफंगे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
23.03.2017
*****

देह  लचकती  देखकर, लता भर  रही आह।
पीपल, ढाक, बबूल सब, इसके मूक गवाह।
इसके  मूक  गवाह,  पुष्प मन  में  सँकुचाये।
जामुन, कटहल, नीम, आम, महुआ बौराये।
गेंदा   और  गुलाब,  कभी  कन्नेर  उचकती।
जग बौराया  जाय,  देखकर  देह  लचकती।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
31.03.2017
*****

कुण्डलिया

रूप  तुम्हारा  देखकर,  प्रकृति  हुई   मदहोश।
नहिं  जाने  क्या सोचकर, रह  जाती खामोश।
रह  जाती   खामोश,  मूक   बन   देह  निहारे।
करे  स्वयं  से  द्वन्द,  स्वयं  से  लड़-लड़  हारे।
गगन  दिखे  निर्जीव, सिंधु  जम गया बिचारा।
नभ-जल-थल खामोश, देख ये  रूप तुम्हारा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
02.04.2017
*****

कुण्डलिया

ग़ालिब  के  दो  शेर  पढ़,  काहे   बनता  शेर।
छंद, बहर, गण, वज्न  से, मत ऐसे  मुँह फेर।
मत   ऐसे    मुँह   फेर,  बेतुका  लगा न  रट्टा।
समझ शब्द का भाव,  लिखे मत यूँ  सरपट्टा।
बकरी  दुहना सीख,  पूत  सुन तू  हालिब के।
काहे  ग़ालिब  बने  शेर, दो  पढ़  ग़ालिब  के।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
03.04.2017
हालिब - दूध दुहनेवाला।
*****

जर्जर चप्पल

देख नजर भर  तू जरा, इस  चप्पल  का हाल।
चार - चार   टुकड़े   हुए,  जर्जर   तन  बेहाल।
जर्जर   तन   बेहाल,   बेल्ट   टूटी   आगे   से।
बड़े   हुनर   से   इसे,  गाँठ   रक्खा  धागे  से।
भाग्य विधाता देख, एक  दिन इसे  पहन कर।
यही देश  का  सत्य,  इसे  तू  देख  नजर भर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.04.2017
*****

कुण्डलिया

मीलों चल जल ला रहीं, सिर पर गागर धार।
पंक्तिबद्ध ये  नारियाँ,  लगें  खिली  कचनार।
लगें  खिली कचनार,  धूप  कोमल तन छेड़े।
ऊबड़ - खाबड़  धरा, लूह  के   लगें  थफेड़े।
ताल  तलैया  पेड़,  नदी  जंगल  औ  झीलों।
को मिल लेउ बचाय, नहीं तो  भटको मीलों।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.04.2017
*****

कुण्डलिया

गागर  मीलों  दूर  से,  लाती  सिर  पर  धार।
पंक्तिबद्ध ये  नारियाँ,  लगें  खिली  कचनार।
लगें  खिली कचनार,  धूप  कोमल तन छेड़े।
ऊबड़ - खाबड़  राह,  लूह  के  लगें  थफेड़े।
ताल  तलैया  पेड़,  नदी  जंगल  औ  सागर।
इनको  रखो  बचाय, भरेगी  तब  ही  गागर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
29.04.2017
*****

कुण्डलिया

वसन    बैंगनी   में    घिरा,   गौरवर्ण   ये   गात।
अमिय सरस मुस्कान ये, मुख पर खिला प्रभात।
मुख  पर  खिला  प्रभात,  चक्षु   दोऊ  कजरारे।
अल्हड़  यौवन   मस्त,   हाथ   से   करे   इशारे।
चूड़ीं,   झुमका   सजे,  पाँव   में   सजे   पैंजनी।
नीलकमल    सी   लगे,   लपेटे   वसन   बैंगनी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.04.2017
*****

कुण्डलिया

भारत  में  मजदूर  ही, क्यों  इतना मजबूर।
मुख  से  रोटी  दूर  है, काम   हाथ  से  दूर।
काम हाथ  से  दूर  दिखे  मुख पर लाचारी।
नगर होय  या गाँव  सब जगह  ये  बीमारी।
महल सदा ही रहे  झोपड़ी के  हक़  मारत।
यही असल  तस्वीर यही  है असली भारत।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.04.2017
*****

कुण्डलिया छंद

बेटा मरता  फ़ौज में, घर  में  मरता बाप।
दंगों  में  पब्लिक मरे, सरकारें  चुपचाप।
सरकारें  चुपचाप, उदंडों  का जयकारा।
भूखे  मरें किसान, कौन  इनका हत्यारा।
नेता का परिवार, मजे  कोठी  में करता।
सरहद पर तैनात, रोज  इक बेटा मरता।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.05.2017
*****

कुण्डलिया छंद

सरकारें  आयीं   गयीं,  बदला   नहीं   विधान।
तब भी मरा किसान ही, अब भी मरे किसान।
अब भी  मरे किसान, लाश कफ्फन  को रोये।
कर्णधार    बेफिक्र,    मौजमस्ती    में   खोये।
नहीं  रहनुमा  दिखे,  कौन  की  ओर   निहारें।
सारे   नेता   एक,   एक   सी   सब   सरकारें।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.05.2017
*****

कुण्डलिया छंद

आए  कई   निजाम  पर, बदला ना  दुर्भाग।
वही भुखमरी रोज की, वही उदर की आग।
वही  उदर  की  आग,  वही जूठन  लाचारी।
वही   रोज   दुत्कार,  वही   हरदिन  बेगारी।
सरकारें दी  बदल, भाग्य पर  बदल न पाए।
वोट  दिया  है  बार,  हाथ  दुर्दिन  ही  आए।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.05.2017
*****

कुण्डलिया छंद

मधुबाला ने जिस घड़ी, निज मुख दिया उघार।
मानहुँ    पूरी  सृष्टि   पर,   दई    मोहनी   डार।
दई   मोहनी   डार,  विश्व   पर   जादू   कीन्हा।
घर   आँगन   बाजार,   सभी  बेकाबू   कीन्हा।
बौराये  हैं   रसिक,  रूप  लख  यह  मतवाला।
बड़ा   सार्थक   नाम,   रखा   तेरा    मधुबाला।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.05.2017
*****

प्रिय अभिषेक की शादी पर आशीष स्वरूप एक कुण्डलिया छंद।

अनामिका  के   हाथ  को,  थाम  रहे  अभिषेक।
मन    से    मंगलकामना,     तुम्हें    अनेकानेक।
तुम्हें   अनेकानेक,   बधाई   इस   शुभदिन  पर।
खुशियों  की सौगात, मिले तुमको गिन गिनकर।
जीवनपथ  पर  चलो,  कदम से कदम मिला के।
दुष्कर  पथ  हो  सुगम,  साथ  में अनामिका  के।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.05.2017
*****

345. कुण्डलिया छंद

हाथी  पर  गधहा  चढ़ा,  गधहे  ऊपर  मोर।
नजर घुमाकर ढूँढ़ते, अच्छे दिन किस ओर।
अच्छे दिन किस ओर, गधहा नीचे  से पूछे।
साल  गए  दो  बीत, काम  बिन  बैठे  छूँछे।
गधी  कहे  वाबले, बोझ  मत ले  छाती पर।
अच्छे दिन नादान, ढूँढ़ मत  चढ़  हाथी पर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.05.2017
छूँछे-खाली, बेरोजगार
*****

दिनाँक 5 मई, 2017 को महाराणा प्रताप ली जयंती पर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिलेबके शब्बीरपुर गाँव में सवर्णों ने बंदूकों, तलवारों से दलितों पर हमला किया और उनके 25 घरों को पुलिस के मौजूदगी में आग लगा दी। इस घटना में 20 आदमी औरतों गंभीर रूप से घायल हुए हैं। इसी पर एक कुंडलिया छंद।

योगी   के   भी   राज   में,  गुंडे  करते मौज।
इनकी  अपनी  गैंग  है, इनकी अपनी फौज।
इनकी अपनी फ़ौज, खौप ना कोई जिसको।
कब दे गाँव जलाय, मार दे कब ये किसको।
जातिधर्म  की सोच, ख़त्म बोलो कब होगी।
बातें हो  गयीं बहुत, करो कुछ श्रीमन योगी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
20.05.2017
*****

कुण्डलिया छंद

पवन  बसंती  देह  में, जगा  रही  अनुराग।
गली-गली  में  प्रीत के, गीत  सुनाए फाग।
गीत  सुनाए फाग, जिया  में  आग लगाये।
विरहा मन  बेचैन, कौन  इसको  समझाये।
मुरझी  काया   लिए,  राह  देखे  लजवंती।
इतनी कहियो जाय, पिया से पवन बसंती।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
20.05.2017
*****

कुण्डलिया छंद

नेताओं  पर  किस  तरह, करूँ भरोसा मित्र।
चतुर बहुरिया  की तरह, इनका दिखे चरित्र।
इनका दिखे चरित्र, काम जो कुछ ना करती।
दिन भर बर्तन  पटक-पटक चौका में धरती।
हर दिन करें  स्वांग,  गली  में   चौराहों  पर।
किस विधि हो विश्वास, दोमुँहें  नेताओं  पर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
20.05.2017
*****

कुण्डलिया छंद

मन  में  उसका वास है, उर में उसका ठौर।
कैसी   ये    बेचैनियाँ,   कैसा   है   ये  दौर।
कैसा है ये दौर, होश कुछ  भी ना  तन का।
अंग-अंग  मदहोश, नशा छाया  यौवन का।
उसकी ही छवि दिखे, गली कूँचे आँगन में।
जब  से वह  चितचोर, बसा है  मेरे  मन में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
21.05.2017
*****

कुण्डलिया छंद

घोड़ा - घोड़ा  होत  है, गधा - गधा ही होत।
घोड़ागाड़ी  में सखे, कभी गधा  मत  जोत।
कभी गधा मत जोत, काम ये नहीं गधे का।
अंधभक्ति  ही सही,  रोग पर  बुरा नशे का।
गधा मनुज से ज्ञान, पा गया जब  से थोड़ा।
रेंक-रेंक  कर  कहे, गधा  नहिं  मैं  हूँ घोड़ा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
02.06.2017
*****

354. कुण्डलिया छंद

पशु-पक्षी निर्णय  किये, हाकिम  बदला जाय।
फिर सब ने मिल स्यार को, राजा दिया बनाय।
राजा   दिया   बनाय,  उसे   जब    बैठे - बैठे।
रहा   सबै   धमकाय,   रोज   मूँछों  को   ऐंठे।
निजी  सचिव   लोमड़ी,  लकड़बग्गे  आरक्षी।
रोज   करें   गुंडई,   रो   रहे   अब  पशु-पक्षी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
03.06.2017
*****

कुण्डलिया छंद

बड़ी अनोखी  बात है, बड़ा  अनोखा साथ।
सेवक महलों  में रहे, स्वामी  को  फुटपाथ।
स्वामी को फुटपाथ,  भूख  से  मरे बिचारा।
फटेहाल  चुपचाप, रोज  कर  रहा  गुजारा।
ये  तेरा   रँग-रूप,   हाय   ये   तेरी  शोखी।
सेवक  तेरी  बात,  दिखे  है  बड़ी अनोखी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.06.2017
*****

357. कुण्डलिया छंद

हत्याओं  का  दौर   है,  राष्ट्रवाद  का  शोर।
धर्मजाति के  नाम पर,  मारकाट  चहुँओर।
मारकाट  चहुँओर, करन  की  है  आजादी।
मजलूमों  की जान,  ले  रही खाकी-खादी।
को  है  जिम्मेदार, गाँव  की  इन आहों का।
किस दिन होगा बंद, दौर यह हत्याओं का।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.06.2017
*****

359. कागज़ पर ही हो रही (कुण्डलिया)

कागज़  पर  ही   हो  रही,  खुशहाली  की  बात।
विज्ञापन    समझा    रहे,   अच्छे    हैं    हालात।
अच्छे  हैं  हालात, कृषक फिर  सड़कों पर क्यों।
जब सब कुछ है ठीक, अरे फिर लगता डर क्यों।
दो  गज  की  उपलब्धि, बताता फिरता सौ गज।
ओ  रे   तिकड़मबाज,  दूर   रख   झूठे  कागज।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.06.2017
*****

367. कुण्डलिया छंद

घोड़ा तजि इंसान ने, दिया गधे  को  मान।
गधहा  तब  से मानता,  वो ही  है  विद्वान।
वो  ही   है  विद्वान,  करे  नित  ढेंचूँ - ढेंचूँ।
सोचे अगले दिवस, मंच पर  जा क्या बेचूँ।
झूठे  जुमलों संग,  देश को जब से जोड़ा।
रेंक-रेंक  कर कहे, गधा नहिं  मैं  हूँ घोड़ा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
24.06.2017
*****

373. ठोकर जीवन में सखे (कुण्डलिया)

ठोकर जीवन  में सखे, बड़े  काम  की  चीज़।
ये अनुभव  की खान है, इससे  मिले  तमीज़।
इससे  मिले तमीज़, धैर्य  हमको  सिखलाती।
कर्मवीर,   बलवान,   सभ्य   इंसान   बनाती।
जो  ठोकर  से   डरे,  जिंदगी    काटे   रोकर।
कदम-कदम  पर मिले, उसे जीवन में ठोकर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.07.2017
*****

374. नंगा, नंगा होत है (कुण्डलिया)

नंगा,  नंगा   होत  है,  मत  करना  तकरार।
नंगों के  मुँह  मत लगो, कह दे जो  दो-चार।
कह  दे जो दो-चार, उसे हँसकर  सुन लेना।
हाँ-हाँ  करते  रहो, ज्ञान  मत  इसको  देना।
करके  तर्क-वितर्क,  कभी  मत  लेना पंगा।
परमेश्वर  से   बड़ा,  धरा  पर   होता   नंगा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
06.07.2017
*****

375. ठाकुर ठोकर खा बने (कुण्डलिया)

ठाकुर, ठोकर खा बने, इस सच को लो जान।
कभी न  मिलते भीख में, पद वैभव  सम्मान।
पद  वैभव  सम्मान, बिना  उद्योग  मिले कब।
तभी पूजनीय  बने, देह  छेनी  से  छिले जब।
ठाकुर  बनने  हेतु,  फिरे  क्यों  इतना  आतुर।
बिन ठोकर खा कौन, बना इस जग में ठाकुर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
09.07.2017
*****
ठाकुर- ईश्वर, देवता, मुखिया

376. सावन की ऋतु आ गयी (कुण्डलिया)

सावन  की  ऋतु आ गयी, घट छाई  चहुँओर।
दादुर  शोर  मचात  हैं, पिउ-पिउ  करते  मोर।
पिउ-पिउ  करते मोर, कामिनी  को  ललचाते।
झूम - झूमकर   वृक्ष,  लता  को  अंग  लगाते।
विरहन को है आस, सजन के  घर आवन की।
रह-रह आग लगाय, जिया में ऋतु सावन की।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
14.07.2017
*****

377. पंकजमुख, काले नयन (कुण्डलिया)

पंकजमुख, काले नयन, गौरवर्ण  यह  देह।
अधरों पर मुस्कान  ले, अँखियों में  ले नेह।
अँखियों  में ले नेह, धरा पर  कामिन उतरी।
छूते  होय  मलीन,  देह  यह  सुथरी-सुथरी।
भ्रमर चक्षु  मदहोश, लूटते दर्शन  का सुख।
पंकज रहे लजाय, देखकर यह पंकजमुख।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.07.2017
*****

378. वर्षा कितनी है सुखद (कुण्डलिया)

वर्षा  कितनी है  सुखद, चलकर देखो गाँव।
घर आँगन जलमग्न हैं, बैठन को नहिं ठाँव।
बैठन को  नहिं  ठाँव, झोपड़ी भीतर  पानी।
एक नहीं दस-बीस, लाख की यही कहानी।
कंगाली  में  कभी, किसी का  मन  है  हर्षा।
बेघर   कैसे   कहें,  सुखद  होती   है   वर्षा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.07.2017
*****

384. मन में नव उत्साह ले (कुण्डलिया)

मन में  नव उत्साह ले, गोरी  पकड़ी  डोर।
सधकर झूले  पे  चढ़ी, देखत  है  चहुँओर।
देखत  है  चहुँओर, वक्ष निज झाँप रही है।
झूल रही पर नियत, पवन की भाँप रही है।
ऊँची पैग  बढ़ाय, विचरती  फिरे  गगन में।
नव उमंग, उत्साह, कामिनी  लेकर मन में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
21.07.2017
*****

393. निष्ठाएं बिकने लगीं (कुण्डलिया)

निष्ठाएं   बिकने  लगीं,  बनने   लगीं   रखेल।
व्यक्तिवाद   हावी   हुआ,  राष्ट्रवाद   है  खेल।
राष्ट्रवाद    है   खेल,   लगे   सट्टे   पर   सट्टा।
पूँजीपति  का  काम,  होय  इकदम  सरपट्टा।
नियम  और  कानून, राह  इनकी  नहिं आएं।
धनपतियों  के  लिए,  बिक  रहीं  हैं  निष्ठाएं।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.08.2017
*****

394. स्वामी को  स्वामी नहीं (कुण्डलिया)

स्वामी को  स्वामी नहीं, सदा  कहो भगवान।
करना कभी विरोध मत, इतना रखना ध्यान।
इतना रखना  ध्यान, सिर्फ जी हाँ ही कहना।
मालिक  से  दो  कदम,  हमेशा  पीछे रहना।
चाहे  हो  वह  दुष्ट,  भ्रष्ट, गुंडा, खल, कामी।
सेवक  के  हित  यही,  रखे  सर्वोपरि स्वामी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.08.2017
*****

398. ठाकुर एक स्वभाव है (कुण्डलिया)

ठाकुर  एक  स्वभाव है, इसकी  होत न जात।
परमारथ हित  जो जिये, वो ठाकुर  कहलात।
वो ठाकुर कहलात, पिये विष जग के हित में।
भेदभाव, अन्याय, नहीं  हो  जिसके  चित में।
गरल पान नहिं सरल, फिरे क्यों इतना आतुर।
बिना त्याग बलिदान, बना  को जग में ठाकुर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
17.08.2017
*****

399. तिरछी चितवन तीर सी (कुण्डलिया)

तिरछी चितवन तीर सी, भृकुटी खिंची कमान।
विश्वमोहनी   रूप  ये,  सब   मिल  हरते  प्रान।
सब  मिल  हरते प्रान,  हार, झुमका औ बाली।
रक्तवर्ण   ये   होंठ,   लटें   ये   काली - काली।
उन्नत  उभरा   वक्ष,  दूधिया   यह   गोरा   तन।
उर में  घुसती जाय,  हाय  रे  तिरछी  चितवन।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
18.08.2017
*****

402. जो भी पहुँचन चाहता (कुण्डलिया)

जो भी पहुँचन चाहता, जल्दी प्रभु  के धाम।
बैठे  प्रभु की  रेल  में,  बन जाएं  सब काम।
बन  जाएं  सब  काम, स्वर्ग  सीधा पहुँचाये।
भेदभाव नहिं  करे, सभी  को  यह  ले जाये।
बाल वृद्ध या ज्वान, बे टिकट भी हो तो भी।
पहुँचेगा देगी स्वर्ग, चढ़ेगा  इस  पर  जो भी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
*****

403. बाबाओं की मौज है (कुण्डलिया)

बाबाओं  की  मौज  है,  इनकी   है   सरकार।
इनकी  खातिर  भक्तगण,  मरने   को  तैयार।
मरने    को    तैयार,   मारने    पर   आमादा।
व्यभिचारी, ठग, चोर, कोइ कम कोई ज्यादा।
राजपाट,  लुटपाट,  हैसियत   राजाओं   की।
दुष्कर्मी, खल, दुष्ट,  मौज  इन  बाबाओं  की।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
26.08.2017
*****

405. कैसे सँवरेगी यहाँ (कुण्डलिया)

कैसे   सँवरेगी  यहाँ,  नारी   की  तक़दीर।
जब नारी समझे  नहीं, खुद नारी की पीर।
खुद नारी की पीर, सास को याद न रहती।
मारपीट अन्याय, बहू क्या-क्या ना सहती।
पुरुष  नोचते   देह,  गाय  को  कुत्ते  जैसे।
उपदेशों  से   नार,  सुरक्षित   होगी   कैसे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
28.08.2017
*****

410. झुमका नथनी से कहे (कुण्डलिया)

झुमका  नथनी  से  कहे,  काहे  दिखे  उदास।
तेरी - मेरी   एक  गति,  एक   हमारी   प्यास।
एक   हमारी   प्यास,   एक  है  शोक  हमारा।
एक  विरह,  संताप,  एक   का   हमें  सहारा।
जो  है  मुझको  रोग,  लगा  है वो  ही तुमका।
फिर क्यों होय अधीर, कहे नथनी से झुमका।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.09.2017
*****

416. टीवी - बीबी में सखे (कुण्डलिया)

टीवी - बीबी  में  सखे, बहुत  बड़ा  है फर्क।
एक  रहे   कंट्रोल   में,   दूजी   रहे   सतर्क। 
दूजी   रहे  सतर्क, आँख हरदम  दिखलाए।
बात-बात  पर रौब, दिखा  छाती  पर आए।
फिर भी पति की जान, शान होती है बीबी।
बीबी जब  हो  संग,  तभी  भाती  है  टीवी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
23.09.2017
*****

नवरात्रों के पावन पर्व पर, नारी पर एक कुण्डलिया छंद।

418. माँ, बहना, सहचारिणी (कुण्डलिया)

माँ, बहना, सहचारिणी, इसके रूप अनेक।
नारी नर  का  मूल है, इससे  ही  हर - एक।
इससे ही  हर - एक,  नार से  कौन अछूता।
सखा, सचिव, गुरु, वैद्य, नार है  ईशप्रसूता।
शक्ति, प्रेम  का स्रोत, धरा है  यही आसमाँ।
नार सृष्टि - आधार, नार  है  माओं  की  माँ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
27.09.2017
*****

420. मँहगा होता सत्य क्यों (कुण्डलिया)

मँहगा  होता  सत्य  क्यों,  और  झूठ  आसान।
क्यों  इसमें   दुश्वारियाँ,  क्यों  ले   लेता  जान।
क्यों  ले  लेता  जान,  जान   जाने   से  पहले।
सच है  दुष्कर बहुत, भले कोई  कुछ  कह ले।
इसकी  चूनर   फटी,  फटा  रहता   है  लँहगा।
सच  कहता  हूँ  सत्य,  बड़ा  होता  है  मँहगा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.09.2017
*****

421. कइयों रावण जल चुके (कुण्डलिया)

कइयों रावण  जल चुके,  आये कइयों राम।
राम नाम  के नाम  पर, करें  कुकर्म  तमाम।
करें  कुकर्म  तमाम,  धर्म  को   नोचें  खाएं।
कभी स्वयं को कृष्ण, कभी  श्रीराम  बताएं।
बनकर   धर्माधीश,  लूटते  लाज  दुशासण।
धर्मगुरू  का  भेष,  धरे  हैं   कईयों   रावण।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
30.09.2017
*****
कइयों - कई।

427. तेरे सम्मुख आ प्रिये (कुण्डलिया)

तेरे  सम्मुख  आ  प्रिये,  किसको  रहता  होश।
विश्व  मोहिनी  रूप  यह,  कर   देता  मदहोश।
कर देता  मदहोश,  छीन लेता  सब  सुध-बुध।
रंग -  रूप,  लावण्य,  देख   धरती  है   बेसुध।
जड़-चेतन, आकाश, निहारे जब से  यह मुख।
किंकर्तव्यविमूढ़,    हुए   सब     तेरे   सम्मुख।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
08.10.2017
*****

432. चाँद निहारे चाँद को (कुण्डलिया)

चाँद  निहारे   चाँद   को,   ले  उमंग  विश्वास।
एक  गगन  के  पास  है,  एक  धरा के  पास।
एक धरा  के पास,   हास  अधरों   पर  साजे।
छलक  रहा   माधुर्य,  देह   लावण्य   विराजे।
तिमिर रहा  ललचाय, खो रहे  सुध-बुध  तारे।
कर  सोलह  श्रृंगार,  चाँद  जब  चाँद  निहारे।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
31.10.2017
*****

437. दुनिया भर में शोर है (कुण्डलिया)

दुनिया  भर  में  शोर  है,  पैदा  हुआ विकास।
नाइन भौचक्की  फिरे,  देख  हास - परिहास।
देख   हास - परिहास,  सोचती   दाई  मनमां।
बिन  दात्री, के  जीव,  सृष्टि  में   कैसे  जन्मा।
सूने  आँगन - द्वार,  दीखता  किसी  न घर में।
खेलन लगा  विकास, शोर  है  दुनिया भर में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
03.11.2017
*****

438. दो कविताएं क्या लिखीं (कुण्डलिया)

दो  कविताएं  क्या लिखीं,  बन बैठे  कविराय।
छंद-बंद  का ज्ञान नहिं,  नहीं  व्याकरण आय।
नहीं व्याकरण आय, नहीं लय-तुक से मतलब।
कथ्य-तथ्य  का लोप, चरण से  आशय गायब।
नहीं   वर्तनी  आय,  वर्ण   भी  इन्हें   न  आएं।
दस-दस गलती  करें, लिखें जब  दो कविताएं।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
04.11.2017
*****

अक्सर रिश्तों की मर्यादा को ताक में रखकर, सालियों को लक्ष्य बनाकर उन पर छींटाकसी करनेवाले पुरुषों पर एक कटाक्ष।

445. पति परमेश्वर बन गए (कुण्डलिया)

पति परमेश्वर बन गए, परिचय रहे कराय।
मित्रों  को  मिलवा  रहे, दूल्हा जी  हर्षाय।
दूल्हा  जी  हर्षाय,  कहें  यह  मेरी  साली।
अब से यह  बन गईं, अर्ध  मेरी  घरवाली।
तब दुल्हन  मुस्काय, कही ये  हमरे  देवर।
अब से हमरी जान, अर्ध हैं पति परमेश्वर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
15.11.2017
*****

448. पिंड छुड़ाओ भूख से (कुण्डलिया)

पिंड  छुड़ाओ  भूख  से,  पानी  कर  दो  बंद।
भूख भूलकर  प्यास पर,  करने दो  अब द्वंद।
करने दो  अब  द्वंद, अन्य  मसलों  में  झोंको।
इससे बने  न  बात,  साँस फिर  इनकी रोको।
तब भी  करें  विरोध, आस्था  को  ले  आओ।
रोटी,  पानी,  हवा,  दवा,  से   पिंड  छुड़ाओ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
19.11.2017
*****
पिंड - पीछा

449. नाम बदलकर कौन सा (कुण्डलिया)

नाम बदलकर  कौन सा, अब तक  हुआ सुधार।
इन्हें  बदलकर  कौन  सा,  रहे   तीर   तुम  मार।
रहे  तीर   तुम   मार,   जहर   मत   ऐसे  घोलो।
अच्छा  हो   कुछ  स्वयं,  नए  विद्यालय  खोलो।
चौखट, छत्त, किबाड़, गिर गये जिनके गलकर।
क्या  मिलेगा  उन  सबका,  यों  नाम  बदलकर।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
19.11.2017.
*****

453. आवत है सो जात है (कुण्डलिया)

आवत  है  सो  जात  है,  राजा   हो   या  रंक।
चाहे  भोली   मीन   हो,  या   हो  ढोंगी  कंक।
या हो  ढोंगी  कंक,  कर्म  से  नहिं  बच  पाये।
नोच-नोच  के वाज, एक  दिन  इसको  खाये।
जिसने  लीन्हा जन्म, काल के  गाल समावत।
कूटनीति छलछंद, काम कुछ भी नहिं आवत।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
02.12.2017
*****
कंक - बगुला

456. "निशा" संग में सोत हो (कुण्डलिया)

"निशा"  संग  में   सोत  हो,  उठते  "ऊषा"  साथ।
भोर  होय  बाहर  कढ़ो, पकड़ "किरन" का  हाथ।
पकड़ "किरन" का हाथ, "प्रभा" को लखो निहारो।
और  "रोशनी"  संग,  खुशी   से   दिवस   गुजारो।
"संध्या"   कहे   रिसाय,   नाथ  अब  रहो  ढंग  में।
हम  पाँचौ  को  छोड़,  सोत  तुम "निशा"  संग में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
04.12.2017
*****
रिसाय - गुस्सा होकर

457. अलि का यही स्वभाव है (कुण्डलिया)

अलि का यही स्वभाव है, कलियों को ललचाय।
यौवन   का   रसपान  कर,  निर्मोही  उड़  जाय।
निर्मोही  उड़  जाय,  पुष्प  को  शुष्क  छोड़कर।
गीत,  मीत,  रस,  प्रीत,  सभी  संबंध  तोड़कर।
यह  है  धोखेबाज,  संभलकर  रहना  कलिका।
खाय-पिये उड़ जाय, आचरण यह है अलि का।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
05.12.2017
*****

458. राजनीत में होड़ है (कुण्डलिया)

राजनीत  में   होड़   है,  को  है  कितना  नीच।
ऊँचों  के  मस्तिष्क  में,  गोबर, कचड़ा, कीच।
गोबर, कचड़ा,  कीच, जहर  इनकी  बातों  में।
रहे   देश   को  बाँट,   रोज   धर्मों - जातों   में।
सब कुछ जायज लगे, आजकल इन्हें जीत में।
सेक्स  सीडियाँ  बनें,  बटें  अब  राजनीति  में।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
07.12.2017
*****

460. चालू हुए विकास से (कुण्डलिया)

चालू   हुए   विकास  से,  पहुँचे  कब्रिस्तान।
ईद, दिवाली  से गुजर, जा  पहुँचे  शमशान।
जा पहुँचे शमशान, गधों को भी नहिं छोड़ा।
गाली और गलौज, सीडियों  का बम फोड़ा।
राजनीत  की राह, दिखी जब ज्यादा  ढालू।
धर्म-जाति  का  पुनः  कर  दिया धंधा चालू।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
10.12.2017
*****

464. बिगाड़ा बुआ (कुण्डलिया)

कलुआ घर आयी लगन, बुआ बिगाड़ा आय।
चिरपरिचित अंदाज  में,  आशिष  दी  हर्षाय।
आशिष  दी हर्षाय, लाल पर  दुक्ख  न आवे।
जैसे   टीबी   भयी   ठीक,   मिर्गी   हो  जावे।
लड़की  वाले  चले  छोड़, तब  पूड़ी  हलुआ।
बिना बियाहे आज रह गया, फिर से कलुआ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.12.2017
*****

465. वह देवालय जात है (कुण्डलिया)

देवालय वह जात है, तुमको क्यों तकलीफ।
गर  वह  बेईमान  है, तुम  हो  कौन शरीफ।
तुम हो कौन शरीफ, जानते सब हैं सब की।
ठेकेदारी  आप  ले  लिए  कब  से  रब  की।
क्या तुम सबसे पूछ, रोज  जाते  शौचालय।
सो  सब  तुमसे  पूछ - पूछ  जाएं  देवालय।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
11.12.2017
*****

466. माँ इकतारा हाथ ले (कुण्डलिया)

माँ   इकतारा  हाथ  ले,  ले   रहि   थी   आलाप।
बेटा  समझा   भूख  से,  माँ  कर   रही  विलाप।
माँ कर रही विलाप, समझ जब कुछ नहिं पाया।
सोचा   भागा   उठा   टॉफियों   को   ले   आया।
झटपट  खोली  एक डाल  दी  माँ  के  मुख  मां।
टॉफी  अंदर   गयी   हुई   तब  जाकर  चुप  माँ।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.12.2017
*****

466. इकतारा गहि हाथ में (कुण्डलिया)

इकतारा  गहि   हाथ  में,   माँ  ले   रही  अलाप।
बेटा   समझा   भूख   से,   माता   करे   विलाप।
माता  करे   विलाप, चुप  नहीं  जब  कर  पाया।
सोचा   भागा   उठा,   टॉफियों   को   ले  आया।
लिए   झुनझुना   हाथ,  ताकता   मुख   बेचारा।
माँ   रियाज़   में   लीन,  हाथ   में   ले  इकतारा।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
12.12.2017
*****

468. जब से तुमने है गहा (कुण्डलिया)

जब  से  तुमने  है  गहा,  निज  हाथों  से हाथ।
कीकर, पीपल  हो गया, पाकर  तुम्हरा  साथ।
पाकर  तुम्हरा  साथ,  हुआ  पीतल  से  सोना।
उपवन सा खिल गया, हृदय का  कोना-कोना।
सीधा  चलने  लगा,  बैल  मरखना  ये  तब से।
पकड़ा कसकर हाथ, प्यार  से  तुमने  जब से।

रणवीर 'अनुपम'
17.12.2017
*****
बैल मरखना -  ऐसा बैल जो पास आने वाले व्यक्ति को मारने के लिए झपटे।

470. तोले भर ही अक्ल थी (कुण्डलिया)

तोले भर  ही अक्ल थी, समझे  मेरा  यार।
और पौन उसको  मिली, बाकी  में संसार।
बाकी  में   संसार, सृष्टि  में  वो  ही  ज्ञानी।
ऐंठा - ऐंठा  फिरे, चूर  मद  में  अभिमानी।
जन्में नया विवाद, नासमझ जब भी बोले।
बातें ओछी हीन, शब्द यह  कभी  न तोले।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
23.12.2017
*****
तोले - एक तोला (सोना तौलने की एक माप)

472. दूल्हा बन इतरा मती (कुण्डलिया)

दूल्हा   बन   इतरा  मती,  ओ   बौरे   नादान।
यह  तेरी  स्वछन्दता, कुछ दिन  की  मेहमान।
कुछ दिन की मेहमान, अकड़, आजादी  तेरी।
सब   जाएगा   भूल,  याद   रख   बातें   मेरी।
वो दिन  अब नहिं दूर, फूँकियै जा दिन चूल्हा।
वा  दिन  पुछिहैं  आय, कहो  हो  कैसे  दूल्हा।

रणवीर सिंह'अनुपम'
24.12.2017
*****

No comments:

Post a Comment

Note: Only a member of this blog may post a comment.