454. रोजी-रोटी भूख की (कुण्डलिया)
रोजी - रोटी, भूख की, टूट रही है आस।
अब की इस गुजरात से, गायब हुआ विकास।
गायब हुआ विकास, गधे सिर से ज्यों सींगें।
बजा - बजाकर गाल, धर्म की मारें डींगें।
कौन जनेऊ धरे, जाति है किसकी छोटी।
इसको रखिये याद, छोड़िये रोजी - रोटी।
रणवीर सिंह 'अनुपम'
03.12.2017
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