Sunday, December 03, 2017

454. रोजी-रोटी भूख की (कुण्डलिया)

454. रोजी-रोटी भूख की (कुण्डलिया)

रोजी -  रोटी,  भूख  की,  टूट  रही   है  आस।
अब की इस गुजरात से, गायब हुआ विकास।
गायब हुआ  विकास, गधे  सिर  से ज्यों सींगें।
बजा - बजाकर  गाल,  धर्म   की   मारें  डींगें।
कौन  जनेऊ  धरे,  जाति   है  किसकी  छोटी।
इसको  रखिये   याद,   छोड़िये   रोजी - रोटी।

रणवीर सिंह 'अनुपम'
03.12.2017
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