Thursday, February 18, 2016

217. गीत भी संगीत भी तुम

217. रात भर सोचा प्रिये पर (गीत)

रात भर सोचा प्रिये पर, ठीक से सूझा नहीं है,
यह मेरी वामांगनी, तुम ही कहो क्या नाम दूँ मैं।

तुम "कुकुभ" "ताटंक" तुम हो, तुम "गजल"  "रूबाइयाँ"।
तुम  "भजन"  "दोहा"  तुम्हीं हो,  हो  तुम्हीं  "चौपाइयाँ"।
"सोरठा"  "रोला"  "सवैया",   तुम   "भुजंगी"   "शालिनी"।
"मंजरी"   हो   "स्वागता"   तुम,   "इन्द्रवज्रा" "मालिनी"।
खिल गया जीवन का उपवन, आगमन जब से हुआ है,
अह मेरी मनभंजनी, तुम ही कहो क्या नाम दूँ  मैं।

"सिन्धु", "पदपादाकुलक", "सारस", "मनोरम", "मालती"।
"विष्णुपद", "सरसी", "बिहारी", "ईश", तुम  "मधुमालती"।
"दुर्मिला", "मदिरा", "विमोहा", तुम "कलाधर", "सार" हो।
हो तुम्हीं "मनहंस" "हाकिल", तुम "सखी" "श्रृंगार" हो।
हर निशा रोशन हुई, जब से पधारी हो प्रिये तुम,
प्रेमदात्री यामिनी, तुम ही कहो क्या नाम दूँ मैं।

"पञ्च-चामर"  "चंचला"  तुम,  "लावणी"  "हरिगीतिका"।
तुम "विधाता" "मल्लिका" तुम, "शक्ति" "गीता" "गीतिका"।
"वीर"  "बाला"  "स्रग्विणी"  तुम,  "रूपमाला"  "राधिका"।
"चौपई"  "दिगपाल"   "तोमर",   हो  तुम्हीं   "प्रमाणिका"।
जब धरा पर तुम चलो तब, जान जाती है निकल ये,
अह मेरी गजगामिनी, तुम ही कहो क्या नाम दूँ मैं।

गीत   भी   संगीत   भी   तुम,  तुम   सुरों    की   साधना।
प्रेम   का   मम   स्रोत   तुम   हो,   हो   तुम्हीं   आराधना।
जिंदगी   के    वृत्त    में   तुम,   प्रेम   का    परिमाप   हो।
देह,   अन्तर,   आत्मा   में,   आप   ही   बस   आप   हो।
तुम नहीं  थी तो अधूरी, थी  हमारी जिंदगी यह,
अह मेरी अर्धांगिनी, तुम ही कहो क्या नाम दूँ मैं।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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217.  गीत भी संगीत  भी तुम (गीतिका छंद)

गीत   भी   संगीत   भी   तुम,  तुम   सुरों   की   साधना।
प्रेम   का   मम   स्रोत   तुम  हो,   हो   तुम्हीं   आराधना।
तुम "कुकुभ" "ताटंक" तुम हो, तुम  "गजल" "चौपाइयाँ"।
तुम  "भजन"  "दोहा"  तुम्हीं   हो,  हो   तुम्हीं "रूबाइयाँ"।

"सिन्धु", "पदपादाकुलक", "सारस", "मनोरम", "मालती"।
"विष्णुपद", "सरसी", "बिहारी", "ईश", तुम "मधुमालती"।
"दुर्मिला", "मदिरा", "विमोहा", तुम "कलाधर", "सार"  हो।
हो  तुम्हीं  "मनहंस" "हाकिल", तुम  "सखी"  "श्रृंगार" हो।

"पञ्च-चामर"  "चंचला"  तुम,  "लावणी"  "हरिगीतिका"।
तुम "विधाता" "गीतिका" तुम,"शक्ति" "गीता""मल्लिका"।
"वीर"  "बाला"  "स्रग्विणी"  तुम,  "रूपमाला"  "राधिका"।
"चौपई"  "दिगपाल"   "तोमर",   हो  तुम्हीं   "प्रमाणिका"।

"सोरठा"  "रोला"   "सवैया",   तुम   "भुजंगी" "शालिनी"।
"मंजरी"    हो   "स्वागता"    तुम,  "इन्द्रवज्रा" "मालिनी"।
जिंदगी   के    वृत्त    में   तुम,   प्रेम   का   परिमाप  हो।
देह,   अन्तर,   आत्मा   में,   आप   ही   बस  आप  हो।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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