Monday, February 15, 2016

214. सजनी के मुख पर गिरे (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

सजनी के  मुख पर गिरे, घूँघट  से  छन धूप।
दृष्टि हमारी  जब  पड़ी, खिला  दोगुना  रूप।
खिला  दोगुना  रूप, चौगुनी  निखरी आभा।
आठ गुना लावण्य, दस  गुना  यौवन  जागा।
बीस  गुना  उत्साह, सौ  गुनी  जागी  अगनी।
ले  लेगा  मम  प्राण,  रूप   तेरा   ये  सजनी।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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