Sunday, February 14, 2016

213. चंचल अँखियाँ देखकर (कुण्डलिया)

कुण्डलिया

चंचल अँखियाँ  देखकर, किसको रहता होश।
तिरछी चितवन चित्त हर, कर  देती खामोश।
कर  देती  खामोश,  जिया  में  धँसती  जाये।
जिसके उर घुस जाय, उसे फिर कौन बचाये।
देख  बावला   रूप,  हँसे  ये   तेरी   सखियाँ।
छीन रहीं  सुख चैन, हाय ये चंचल  अँखियाँ।।

रणवीर सिंह (अनुपम)
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